
सिटीजन जर्नलिस्ट-अजीत राज-बेगूसराय

पिछले सप्ताह बिहार के बेगूसराय जिले के एक गांव में प्राइवेट शिक्षक की आत्महत्या की खबर आई, कारण था कोरोना के कारण उनकी कमाई का लॉक होना। इसी तरह दरभंगा के निजी विद्यालय के एक शिक्षक की सब्जी बेचते हुए एक तस्वीर सामने आई थी। कोरोना महामारी के दौरान इस तरह की कई घटनाएं हुई है जो शिक्षित कामगारों की स्थितियों को दिखा रही है। हालांकि कई शिक्षण संस्थानों में ऑनलाइन क्लासेज चलाई जा रही है लेकिन ये छोटे स्तर के विद्यालयों में संभव नहीं है और छोटे बच्चों व ग्रामीण विद्यालयों में तो असम्भव ही है। बड़े बच्चों के लिए संचालित कोचिंग व विद्यालय ऑनलाइन माध्यमों से अध्ययन सामग्री (स्टडी मटेरियल) उपलब्ध करवा रही है लेकिन उन्हें बदले में पैसे नहीं मिल रहे हैं। हां, मैं इस आलेख में मध्यम एवम लघु व्यवस्था व आय वाले शिक्षण संस्थान की बात कर रहा हूँ जो संस्थान का संचालन किराए के भवन में कर रहे हैं। उनके लिए यह दौर भयावह है (इंटरनेशनल स्कूल की स्थिति अलग है)।
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हाल के वर्षों में राज्य सरकार ने निजी शिक्षण संस्थानों को रेजिस्ट्रेशन कराने को कहा था जिसके लिए ₹5000 फीस भी निर्धारित की गई थी और रजिस्ट्रेशन रिनुअल कराने के लिए प्रत्येक तीन वर्षों में इतनी राशि पुनः जमा करनी पड़ती है। प्रश्न ये उठता है कि ऐसे निजी शिक्षण संस्थान, कोचिंग संचालक, संस्थान से जुड़े शिक्षक व अन्य कर्मचारियों के लिए सरकार ने क्या किया, अगर वह कुछ नहीं कर सकती है तो फिर रजिस्ट्रेशन क्यों कराया जाता है। खैर, कोरोना वायरस ने सरकार के ढकोसले वादों की भी पोल खोल दी। कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता है ऐसे में शिक्षण संस्थान बन्द करने का फैसले को गलत नहीं माना जा सकता है लेकिन जब मदिरालय, भोजनालय व देवालय खुल रहे हैं तो फिर शिक्षालय को खोलने में देरी क्यों ?