
भारत की गरीबी पर वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह के कलम से आलेख
बिहार ब्रेकिंग

कोई कितना गरीब है यह इस बात से तय होता है कि तुलना किससे की जा रही है। व्यक्ति, समूह, समाज, देश और महाद्वीप गरीबी के इसी पैमाने पर देखे जाते हैं। वर्ल्ड इनइक्वालिटी डेटाबेस के अनुसार आज भारत में नीचे की आधी आबादी का गरीबी का स्तर वही है जो सन 1932 में याने ग्रेट डिप्रेशन (महामंदी) के तत्काल बाद अमरीका के 50 प्रतिशत नीचे के वर्ग में था। लब्बोलुआब ये कि हम गरीबी में भी अमेरिका से 90 साल पीछे हैं। आजादी मिली तो संविधान के जरिये “हम भारत के लोग अपने को आर्थिक न्याय देने को प्रतिबद्ध हुए”, नेहरूवियन सोशलिज्म के नाम से राज्य की समाजवादी नीति बनी, सन 1970 में “गरीबी हटाने का नारा दिया” और चार साल बाद आपातकाल लगाने का कारण भी गरीबों का विकास बताते हुए 42 वें संशोधन के जरिये संविधान की प्रस्तावना में “समाजवाद” शब्द जोड़ा गया।
हमसे यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, डेलीहंट, Koo App, सिग्नल और टेलीग्राम पर यहां क्लिक कर जुड़ें
हर चुनाव मंच से राजनीतिक वर्ग ने बताया कि उसका लक्ष्य गरीबों का उत्थान है। सैकड़ों गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम सत्ता-प्रसाद में बना कर राजनीतिक वर्ग जुगाली करता रहा। सन 2014 में एक बार फिर “सबका साथ, सबका विकास” का नारा आया। लेकिन आजादी तो पहले 30 वर्षों में आधी आबादी का वास्तविक सालाना आय मात्र 2.2 प्रतिशत रही। चौंकाने वाली बात यह कि अगले 45 साल भी यही दर बनी रही। नोबेल पुरष्कार विजेता अभिजीत सेन के मुताबिक भारत दुनिया के सबसे अधिक आर्थिक असमानता वाले देशों में अग्रणी है। इसे एक और तरह से समझें।
हमसे यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, डेलीहंट, Koo App, सिग्नल और टेलीग्राम पर यहां क्लिक कर जुड़ें
मानव विकास सूचकांक जब 31 साल पहले शुरू हुआ तो भारत 135 वें स्थान पर था। आज भी कमोबेश वहीं का वहीं है जबकि जीडीपी आयतन में देश दो दर्जन खाने ऊपर आ कर आज छठवें स्थान पर है। मतलब विकास का लाभ सरकारों की संभ्रांत-पोषक नीतियों के कारण नीचे तक नहीं पहुँच रहा है। एक भ्रष्ट सिस्टम में राजनीतिक वर्ग का मंच से वादा करना और जमीन तक लाभ को डिलीवर करना दोनों में बड़ा अंतर होता है।