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देेश ही नहीं दुनिया में अपनी तेज रफ्तार की वजह से मशहूर धावक मिल्खा सिंह नहीं रहे। वे 91 वर्ष की उम्र में कोरोना की वजह से जिंदगी की रेस हार गए। मिल्खा सिंह और उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह दोनों ही कोरोना से पीड़ित थे। जिसमें उनकी पत्नी का निधन इसी सप्ताह हो गया था जबकि मिल्खा सिंह में शुक्रवार की रात चंडीगढ़ में पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली। विदित हो कि बीते दिनों ही मिल्खा सिंह कोरोना निगेटिव हुए थे, लेकिन अचानक से उनकी तबीयत नाजुक होने लगी इसके बाद उन्हें चंडीगढ़ के PGI अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां उनकी मौत हो गई है। मिल्खा सिंह का अंतिम संस्कार आज शाम 5 बजे चंडीगढ़ के सेक्टर 25 स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा। अंतिम दर्शन के लिए आज 3 बजे उनका पार्थिव शरीर उनके सेक्टर 8 सिथित घर पर रखा जाएगा।
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20 नवंबर 1929 को गोविंदपुर (अब पाकिस्तान में) में जन्मे मिल्खा सिंह एक धावक थे। उनकी रफ्तार को देखते हुए ‘उड़न सिख’ कहा जाता था। भारत विभाजन में अपने माँ बाप को खो देने के बाद मिल्खा सिंह शरणार्थी बन भारत आये थे। एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने 200 मी और 400मी की दौड़े सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे 400मी के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे। कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा। पाकिस्तान में एक बार दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।
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मिल्खा सिंह में 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी और 400 मी की दौड़ में स्वर्ण पदक जीते थे इसके साथ ही उन्होंने 1962 के एशियाई खेलों और 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था। वे पद्म श्री के उपाधि से भी नवाजे जा चुके हैं। बॉलीवुड के जाने माने निर्माता निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनके ऊपर एक फ़िल्म भी बनाई जो कि काफी चर्चित हुआ।