
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी-आस्त्रजेनिका द्वारा ईजाद की गयी कोरोना वैक्सीन एजेडी-१२२२ जो भारत में सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा “कोविशिल्ड” के नाम से बनाई जा रही है, एक नयी समस्या में घिर गयी थी लेकिन समय से सरकार की तत्परता से संकट से मुक्ति मिली. दुनिया भर में चल रहे मानव-प्रयोग की तरह भारत में कम्पनी ने हजारों वालंटियरों पर इसका प्रयोग किया. अचानक चेन्नई के एक वालंटियर ने कम्पनी पर पांच करोड़ हर्जाना देने का मुकदमा यह कहते हुए किया कि वैक्सीन से उसकी दिमागी और मनोवैज्ञानिक स्थिति खराब हो गयी है. कम्पनी से भी उसके खिलाफ १०० करोड़ मानहानि का प्रति-दावा ठोक दिया. भारत सरकार आसन्न संकट को भांप गयी और तत्काल दिल्ली से पांच विशेषज्ञों की टीम जांच के लिए भेजी. टीम की रिपोर्ट ने बताया कि आरोप निराधार थे लिहाज़ा कोई भी मुआवजा देने की जरूरत नहीं है. भारत में सरकार और जनता को सतर्क रहना होगा क्योंकि देश-विरोधी या सरकार-विरोधी ताकतें अफवाहें फैलाना शुरू कर सकती हैं यह कहते हुए कि अमुक व्यक्ति पर अमुक टीके का प्रयोग अमुक बीमारी का कारण बना. जाहिर है अगर देश में गणेश जी के दूध पीने की अफवाह पर करोड़ों लोग मंदिरों में दूध चढ़ाने लाइन लगा सकते हैं तो अफवाहों से प्रभावित हो कर टीका न लगवाने की भी ठान सकते हैं. और तब देश को पिछड़ने से कोई नहीं रोक पायेगा.

उधर ब्रिटेन में दुबारा तबाही मचाने वाले कोरोना की वैक्सीन अगले दो हफ्ते में सार्वजानिक प्रयोग के लिए ला रहा है. अगले क्रम में यूरोप और अमरीका होंगें. ब्रिटेन छोटा और कम आबादी का संपन्न मुल्क है. सरकार को जल्द फैसला लेना हीं था. जिस अमरीकी वैक्सीन का चुनाव किया है वह वैज्ञानिकों के अनुसार मेसेंजर –आरएनए नामक एक क्रांतिकारी और बेहद सुरक्षित नयी तकनीकि पर आधारित है. इसमें वैक्सीन मात्र शरीर को सन्देश देती है कि अमुक एंटीबाडी विकसित करे. बाकि काम शरीर करता है लिहाज़ा वैक्सीन का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता. भारत में भी इस तकनीकि पर आधारित एक शोध जारी है और इसे सरकारी बायो-तकनीकि विभाग द्वारा “प्रारंभिक-धन” दे कर पुणे की एक संस्थान द्वारा कराया जा रहा है जिससे प्रधानमंत्री ने अलग से बातचीत की.
मार्च में यह वैक्सीन उपलब्ध होने की आशा है. इसके अलावा सरकार के पास पांच अन्य वैक्सीन कैंडिडेट्स हैं जिनमें एक ने एक पुणे-स्थिति केंद्र में उत्पादन तक शुरू कर दिया है. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी वाली यह तकनीकी परम्परागत है याने चिम्पांजी के शरीर में सामान्य फ्लू के एडेनोवायरस वेक्टर को लेकर कुछ जेनेटिक परिवर्तन करके इस मानव शरीर में डाला जाता है और साथ हीं पैदा हुए कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर एंटीबाडीज बनाने लगता है. इसके मानव-सेल में घुसने से रोकने के लिए भी टी-लिम्फोसाइट्स को एक खास तरीके से सक्रीय किया जाता है—याने दोहरा-अवरोध. यह वैक्सीन सामान्य फ्रीज के तापमान पर रह सकता है. इसकी कीमत भी मात्र कुछ सौ रुपये है. आमतौर पर किसी भी वैक्सीन को मानव प्रयोग के लाने के पहले तीन-चार साल तक उसका असर देखना होता है. लेकिन चूंकि संकट बड़ा है लिहाज़ा नियमों को शिथिल करना मजबूरी है
एन के सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व महासचिव, बीईए