

“मैला आँचल” जैसी कालजयी रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु के गाँव-घर पहुँचकर पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार को बदलने हेतु तीन क़समें खाई। इन्होंने अपनी क़सम या शपथ के साथ साथ कालखंड का भी विवरण दिया है। इनकी पहली क़सम – ‘बिहार’ है, दूसरी क़सम – ‘बेटर बिहार’ (2020-2025), तीसरी क़सम ‘टोटल ट्रांसफॉरमेशन’ (2020-2030) है। इन्होंने अपनी तीनों क़समों को पूरा करने के लिए वर्ष 2030 का समय माँगा है।
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चौधरी प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट है जिन्होंने 2020 से एक राजनीतिक आंदोलन “सबका शासन” की शुरुआत की है। इसी शृंखला के तहत जून के दूसरे सप्ताह वह मैला आँचल, परती परिकथा, कितने चौराहे, जूलुस, दीर्घतपा और पलटू बाबू रोड के रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु के घर पर थी। पुष्पम प्रिया चौधरी का मानना है कि साहित्यकारों से उन्हें प्रेरणा मिलती है और रचनाकारों को “केवल जलती मशाल” की संज्ञा दी। इसके समर्थन में सुश्री चौधरी प्रेमचंद के कथन “साहित्यकार, राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाकर चलने वाली सच्चाई है” से कहती हैं कि वह उसी मशाल से रोशनी की उम्मीद में जाती है।
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यह महज़ संयोग है कि मैला आँचल का मुख्य पात्र प्रशांत पढ़ाई पूरी करने के बाद विदेश जाने की अवसर को ठुकराकर मेरीगंज जैसे पिछड़े क्षेत्र में काम करना पसंद करता है और पुष्पम प्रिया विदेश में पढ़-लिखकर बिहार जैसे पिछड़े राज्य में काम करना चुनती है। इनका मानना है कि ‘राजनीति को बदलना होगा क्योकिं लोगों का भविष्य और भलाई इस पर अब पहले से भी ज़्यादा आश्रित है। हम पीछे छूट जाने का जोखिम नहीं ले सकते। किसी को तो आगे आना होगा. और वह “किसी” बनने जा रही है’। आज रेणु के घर पर पुष्पम प्रिया ने ‘डागडर प्रशांत’ का आदर्शवाद, ‘बावनदास’ की प्रतिबद्धता और ‘कालीचरण’ की क्रांतिकारिता ग्रहण की और शपथ ली कि आपकी आंचलिक ‘शस्य श्यामला’ भूमि को ग्लोबल हॉटस्पॉट बनाऊँगी। अररिया-पूर्णिया का आँचल मैला नहीं, सुनहरा है।