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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर
गुरूसाक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:
हम हर वर्ष आज के दिन यानि 5 सिंतबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं। पर क्या आपको पता है कि हम आज ही शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं? अगर आप जानते भी हैं तो आइए एक बार फिर से नजर डालते हैं शिक्षक दिवस और इससे जुड़ी बातों पर और नमन अर्पित करते हैं उन सभी शिक्षकों के नाम जिनसे हम कुछ न कुछ शिक्षा लिये हैं। एक बात और बताना चाहेंगे कि शिक्षक केवल वे नहीं हैं जिन्होंने हमें विद्यालय के वर्ग में ट्यूशन में कुछ पढ़ाया है बल्कि वे भी हमारे लिए एक शिक्षक के रूप में ही पूजनीय हैं जिनसे हमने रोजमर्रा की जिंदगी में भी कुछ न कुछ सीखे हैं।

ये तो सबको पता है कि शिक्षक दिवस हम भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति और द्वितीय पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के अवसर पर हर वर्ष मनाते आ रहे हैं। वे 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे थे और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए उनकी जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है लेकिन भारत मे सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है इसलिए हम 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं।
भारत में शिक्षक दिवस का प्रारंभ 1962 में शुरू हुआ जब पूर्व राष्ट्रपति के कुछ शिष्यों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने के लिए अनुमति मांगने गये तो उन्होंने कहा था कि मेरा जन्मदिन अलग से न मना कर कुछ ऐसा करना चाहिए कि भारत के लोगों को एक नई दिशा मिल सके। और तब से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है। आज शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षकों को भी वह सम्मान मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अपने जीवन के शुरुआती दिनों से ही शिक्षा के प्रति काफी लगाव रहा था। वे शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा कुछ अलग और बेहतर करने के लिए तत्पर रहते थे। उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया एक विद्यालय है जहां से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। जीवन में कभी भी कुछ अच्छा और ज्ञानवर्धक सीखने को मिले तो उसे तुरंत ही आत्मसात करना चाहिए। वह अपने छात्रों को पढ़ाते समय उनको पढ़ाई कराने से ज्यादा उनके बौद्धिक विकास पर ध्यान देते थे।