
बिहार के पूर्व आई.ए.एस. और वरिष्ठ नौकरशाह पंचम लाल बिहार की गोपालगंज लोकसभा सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं। 1974 बैच के पंचम लाल बिहार में मुख्य सचिव और भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी रह चुके हैं साथ ही सारण के आयुक्त के साथ ही राज्य सरकार में भी कई महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व संभाल चुके हैं। गोपालगंज सुरक्षित लोकसभा सीट है और यह 1976 में जिला बना था। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की कुल जनसंख्या 25,58,037 है और यह बिहार के पिछड़े जिलों में भी शुमार है। पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2014 में यहां से भाजपा उम्मीदवार जनक राम ने जीत दर्ज की थी। जनक राम को 4,78,773 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस की उम्मीदवार डॉ ज्योति भारती से दुगुने से भी ज्यादा के अंतर से जीत दर्ज की थी। गौरतलब है कि छह विधानसभा क्षेत्र वाली इस संसदीय सीट पर ब्राह्मणों की भी बड़ी तादाद है जिससे यहां मुक़ाबला रोचक रहता है।

बैकुंठपुर, बरौली, गोपालगंज, कुचायकोट, हथुआ और सुरक्षित सीट भोरे कुल मिलाकर इन छह विधानसभा सीटों के रास्ते ही गोपालगंज संसदीय सीट का सफर तय किया जा सकता है। इस बार यहां से महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर पंचम लाल का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। पंचम लाल को जानने वाले बता सकते हैं कि बेहद तेज़ तर्रार छवि वाले प्रशासनिक अधिकारी पंचम लाल ने कभी भी समझौता नहीं किया। पंचम लाल लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और सारण कमिश्नर रहते उनके बयान ने सरकार के अंदर भूचाल मचा दिया था। उन्होंने सोनपुर मेले के दौरान साल 2002 में कहा था कि स्वीस बैंकों में जमा पैसे का दस फीसदी भी अगर देश में लौट आए तो इस देश की गरीबी हमेशा के लिए मिट जाएगी। इसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा सत्ता में आयी लेकिन यही मुद्दा गौण हो गया और काला धन को लेकर सरकार बैकफुट पर नज़र आयी। बिहार ब्रेकिंग की मानें तो कांग्रेस अथवा राजद की ओर से पंचम लाल की सीट कन्फर्म मानी जा रही है। पंचम लाल रविदास जाति से हैं और ब्राह्मणों के ऊपर उनकी लिखी दो किताबें आज भी रेफरेंस के तौर पर पढ़ी जाती हैं।
हिंदू परंपरा और भारत में सामाजिक क्रांति- एक दृष्टिकोण ये ऐसी दो किताबें हैं जिसमें ब्राह्मणों से जुड़ी कई ऐसी जानकारियां हैं जो पंचम लाल को भीड़ से अलग करती है। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और ऊर्दू के अच्छे जानकार रहे पंचम लाल का कई विवादों से भी चोली-दामन का साथ रहा लेकिन अपनी ईमानदार छवि के कारण उन्होंने अपने आलोचकों को हमेशा पराजित किया। देखना दिलचस्प होगा कि पंचम लाल की इस दावेदारी का बांकि पार्टियों पर क्या असर पड़ता है। इतना तो साफ है कि दलित और ब्राह्मणों के बीच समान रूप से स्वीकार्य लाल अगर गोपालगंज के रण के सिपेहसलार बनते हैं तो भाजपा के लिए ये लड़ाई आसान नहीं होगी।