
प्रदेश के जाने माने स्वस्थापित व्यवसायी और सामाजिक मुद्दों पर चेतना के संचारक, अपने विचारों से समाज मे सकारत्मकता लाने के भगीरथ प्रयास के जनक देवप्रकाश सिंह ने दहेज प्रथा पर अपने विचार रखे हैं। आज जब प्रियंका- निक, रणवीर-दीपिका और अंबानी परिवार के विवाह को देख कर आंखे चौन्धिया रही, ऐसे में सरकार के कम खर्च में शादी और दहेज प्रथा के अंत पर सवालिया निशान लगना लाजमी है… इन्ही मुद्दों पर देवप्रकाश सिंह जी के कलम से, उनके विचार…

आम एवं सामान्य लोग अगर अपने दामाद को शादी में एक मोटर साईकल , घड़ी, अंगूठी देते तो देश के सारे कानून, आदर्श एवं नारा इसके विरोध खड़ा होता और होना भी चाहिए। पर ये समाज के बड़े लोग, अग्रणी लोग जब अपने बच्चों की शादी करते तो क्या प्रचारित होता
3 लाख का निमंत्रण पत्र
500 करोड़ का बंगला
इतने करोड़ के जेवर
और सोना चांदी के टेबल, कुर्सी, थाली और फिर धनपुंगव कहते मैं बेटी का बाप हूँ, कोई कमी रह गयी हो तो क्षमा करेंगे। जैसे बेटी का बाप दया का पात्र है और न तो ये हैं। और इस शादी में शामिल होते सारे के सारे सितारे, महानायक, प्रधानमंत्री, और कौन नहीं। क्या संदेश जाता । प्रधानमंत्री खुद को चाय वाला कहते, कभी सुना नही किसी चाय वाले कि बेटी की शादी में जाकर 1100 रुपये का लिफाफा पकड़ाते। चायवाले का मदद भी हो जाता। न्योता एवं लिफाफे का असल प्रयोजन सिद्ध हो जाता। झाड़ू देने वाली का बेटा बनता कलेक्टर। इसका प्रचार प्रसार होता, लड़की आती किसी गरीब की उच्च संस्कार वाली लक्ष्मी नही, विसादग्रस्त जिद्दी , नाज़ों में पली बड़े बाप की बेटी फिर शादी होने से पहले कूदने के लिए भी चाहिए ऊंचे चौदह मंज़िला मकान। रेलवे की पटरी पर सोने से पहले दिल्ली के पांच सितारा होटल लीला जिसका प्रतिदिन का भाड़ा 25000/ रुपया है, में जाकर ठहरना। पिता होमियोपैथी का डॉक्टर। फिर कहाँ से आती ये राजशाही।
इस महिमामयी शादी से। डेसटीनेशन मैरिज इटली की शादी , ये सभी समाज को गलत संदेश दे रहे। शादी दो व्यक्ति का पाणिग्रहण है जिसमे बड़े बुजूर्गों का आशीष एवं साक्ष्यता की आवश्यकता होती है न कि आडम्बर एवं धन का अश्लील प्रदर्शन।
आज के युवक आई ए एस , आई पी एस आदि बन कर क्या कर रहे, सर्वविदित है। शादी एक पवित्र बंधन ,धन का श्रृंगार बुरी तरह बनता जा रहा है।
कभी श्रीमती इंदिरा गांधी , नेहरू के इकलौती पुत्री की शादी हुई थी तो नेहरू ने मात्र चरखा से अपने सूत से काती हुई एक साड़ी भेंट की थी।
मित्रो ये धन के आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन मानसिक खोखलेपन को प्रदर्शित करता है और इसका बहुत ही बुरा दुष्प्रभाव पड़ता समाज के ऊपर।
आम लोग तबाह हो जाते। आज इतने सरकारी प्रचार एवं कानून की कसौटी के बावजूद क्या हो रहा। सरकारी नौकरी मिली नहीं कि जनक जी का अतिदोहन शुरू। जितनी बड़ी नौकरी उतना बड़ा दोहन। बड़े नामचीन कालेजों की सुविज्ञ लड़कियां इनकी दुल्हन बनती। यही है उच्च शिक्षा का अर्थ घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस सब कुछ चाहिए इन सुस्थापित वरों को। और फिर सरकार के प्रचार पढ़िए, ये दहेज के भेड़िया किसे कहते। वे सभी तो सरकार में ही हैं, उच्चस्थ पदों पर आसीन, समाज के अग्रणी लोग। है न विरोधाभास।