
क्या आप यकीन कर सकते हैं कि आपके शहर की हवा इतनी जहरीली हो जाए कि सांसें जिंदगी देने की बजाय जिंदगी को मौत के करीब ले जाने लगे। यकीन कर सकते हैं क्या आप कि आपक शहर की हवा इतनी जहरीली है कि आप हर सांस के साथ अपने फेफड़ों में जहर खींच रहे है। यकीन नहीं करने का सवाल हीं नहीं उठता क्योंकि दिल्ली को देख हीं रहे हैं ाप। आपकी दिल्ली दिलवालों की नहीं रही बल्कि फिजाओं में और हवाओं में जहर वाली जहरीली दिल्ली हो गयी है। क्या हमें चिंता नहीं होनी चाहिए कि हमारे देश की राजधानी, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दमघोटू हवाों वाली एक जगह है जहां जिंदगी जिंदगी नहीं बस एक मजबूरी है । फेफड़े जहर की खुराक ले रहे हैं और हम हर रोज मौत के करीब जा रहे हैं। तो हमें दिल्ली से डरने की भी जरूरत है और हमें दिल्ली से सीखने की भी जरूरत है। दरअसल दुनिया में प्रदूषण एक खतरनाक समस्या है। हम अपने देश में इसके भयंकर दुष्परिणाम देख भी रहे हैं और अपनी जिंदगी में उन दुष्परिणामों को झेल भी रहे हैं। इसलिए आज हैप्पी दीपावली है लेकिन यह भी ख्याल रखें कि खुशियां अब अनुशासन मांगती है। जश्न की जरूरत है अनुशासन नहीं तो खतरा बढ़ेगा। हमें अब यह समझना होगा कि दीपावली रोशनी का त्योहार है, फिजाओं हम बारूद जितना कम घोलें हमारे लिए ठीक है। पटाखों से परहेज अगर हम कर सकें तो शायद हवाओं में और जहर नहीं घुलेगा। खुशियां मनाईए लेकिन याद रखिए कि हम प्रदूषण के उस खतरनाक स्तर वाले दौर में अपनी जिंदगी जी रहे हैं जहां सांस लेना दूभर है।
आत्मअनुशासन की बेहद जरूरत है
पटाखों-बारूद से पिछले दो-तीन सालों से दिल्ली में ऐसी तबाही मची है कि कई दिनों तक लोग घरों से निकलने में हिचकते रहे. इतना प्रदूषण कि सांस लेना मुश्किल हो गया था. इतना धुआं कि दिन में भी लाइट जला कर वाहन धीरे-धीरे चलते थे. स्कूलों को बंद करना पड़ा था. दिल्ली की सड़कों पर मास्क लगा कर लोग निकलने लगे थे. और तो और, हालात ऐसे हो गये थे कि टेस्ट क्रिकेट मैच को रद्द करने की स्थति बन गयी थी. खिलाड़ियों को खेलने में सांस की परेशानी होने लगी थी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसी संदर्भ में आया है ताकि जीवन संकट में न पड़े. एक बड़ा वर्ग यह सवाल कर रहा है कि परंपरा है, पटाखा फोड़ेंगे. पुलिस क्या कर लेगी? कितने लोगों को पकड़ेगी या कार्रवाई करेगी. ऐसे लोग अपने बारे में, अपनेे परिवार और बाद की पीढ़ी के बारे में भी सोचे. पटाखा जरूर फोड़े, परंपरा का जरूर पालन करें. किसी ने रोका नहीं है. लेकिन सिर्फ परंपरा के नाम पर जिंदगी से खिलवाड़ी न करें. धैर्य रखें. यह त्योहार है. ऐसा कुछ न करें जिससे आपका जीवन ही संकट में पड़ जाये. सांस लेने में दिक्कत होने लगे. यह आत्म अनुशासन का मामला है. याद रखिए अगर हमें उन चीजों के इस्तेमाल से खुशी मिलती है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, प्रदूषण के हालात को और बदत्तर करने वाले चीज अगर हमारे त्योहारों की जरूरत हैं तो जितनी जल्दी हो सके हमें अपनी इन जरूरतों का विकल्प ढूंढना होगा। याद रखिए अगर हमने ऐसे नुकसानदेह जरूरतों से समझौता नहीं किया तो फिर जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत सांसे हर रोज इस जहर की शिकार हो रही है और न जानें कब छिन जाए।
