बिहार ब्रेकिंगः जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय को लेकर बेहद गंभीर सवाल उठाया है। उन्होंने प्रेस रिलीज जारी कर कहा है कि मोतिहारी का यह विश्वविद्यालय भयंकर अराजकता की चपेट में है। उन्होंने कहा है कि पिछले चार सालों के दौरान देश में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की जो दुर्दशा हुई है, वह जगजाहिर है। छोटे से लेकर बडे सरकारी शिक्षण संस्थानों का प्रशासन चुन-चुनकर उन अयोग्य लोगों के हाथों में सौंप दिया गया है, जिनका न तो अकादमिक रिकार्ड साफ सुथरा है और न ही उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव है। उन लोगों की एकमात्र योग्यता है कि वे उस विचारधारा के प्रति समर्पित हैं जो इस देश को रोजाना जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बांटने का काम कर रही है।
अराजकता की इस स्थिति से बिहार के मोतिहारी का महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय भी अछूता नहीं है। सबसे गंभीर मामला तो इस विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति से ही जुडा है। कुलपति प्रो. अरविंद अग्रवाल ने अपनी डिग्रियों और अकादमिक उपाधियों में जालसाजी कर यह पद हथियाया है। प्रो. अग्रवाल कुलपति पद के अयोग्य तो हैं ही, वे विश्वविद्यालय में पनप रही आपराधिक गतिविधियों के संरक्षक, प्रेरक और अपराधी तत्वों के सरगना भी हैं। वे अपनी मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने वालों तथा अपने अनुचित आदेशों का पालन न करने वाले शिक्षकों पर जानलेवा हमले भी करवाते हैं। बीती 17 अगस्त को सहायक प्राध्यापक डॉ. संजय कुमार पर कराया गया जानलेवा हमला और उन्हें जिंदा जलाने की कोशिश इसका सबसे बडा प्रमाण है। हमलावरों का साफ कहना था कि कुलपति और उनके समर्थकों के खिलाफ आवाज उठाने वालों का यही हश्र होगा। इस हमले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें यह सब साफ-साफ सुना जा सकता है। संजय कुमार ने अपने पर हुए हमले की जो रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई है उसमें जिन लोगों के नाम लिए गए हैं, उन सबको विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों के परे जाकर दो-दो, तीन-तीन अग्रिम वेतन वृद्धि दी है, जिसका जिक्र सीएजी की नमूना जांच रिपोर्ट में भी है। हैरानी की बात तो यह है कि पुलिस काफी टालमटोल के बाद संजय कुमार पर हमले की रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन एक भी आरोपी को आज तक गिरफ्तार नहीं किया है।
इस विश्वविद्यालय में आर्थिक भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आलम यह है कि कुछ सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की शिकायत के आधार पर तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देश पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी नमूना जांच में विभिन्न मामलों में करोडों रुपए की हेराफेरी पायी है।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एससी, एसटी और ओबीसी के लिए संविधान प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था का भी मखौल उडाया जा रहा है। गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्तियों और छात्रों के प्रवेश में आरक्षित वर्ग की सीटों पर योग्य उम्मीदवारों को भी मनमाने तरीके से अयोग्य करार देकर भर्ती नहीं किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा महिला प्राध्यापकों को तरह-तरह प्रताडित और करने की घटनाएं भी आम बात है, जो कुलपति की स्त्री विरोधी सामंती मानसिकता की परिचायक है। इस सिलसिले में राष्ट्रीय महिला आयोग भी स्थानीय पुलिस प्रशासन को जांच के आदेश देकर रिपोर्ट तलब कर चुका है, लेकिन उस आदेश की अनदेखी करते हुए आज तक कोई जांच अथवा कार्यवाही नहीं की है। कुलपति की शह पर एक ओर तो प्राध्यापिकाओं और छात्राओं पर हमले किए जाते हैं, उन एसिड फेंकने की धमकियां दी जाती हैं और दूसरी ओर इन हरकतों को विरोध करने वाले शिक्षकों को यौन उत्पीडन के फर्जी मामलों में फंसाने की साजिशें रची जाती हैं।
कुलपति के संरक्षण में इन सारी गतिविधियों के प्रति राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन का रवैया न सिर्फ उदासीन है बल्कि राज्य में सत्तारुढ गठबंधन के कुछ नेता और प्रशासनिक अधिकारी तो ऐसा कुलपति और उनके समर्थकों के संरक्षक की भूमिका अदा कर रहे हैं।
कुलपति प्रो. अग्रवाल बिहार के प्रति दुराग्रहों से भरे हुए हैं और यही वजह है कि वे येनकेन प्रकारेण बिहार के बच्चों को, खासकर बिहार के गरीब, दलित और पिछडे वर्ग के बच्चों को शुरू से ही प्रवेश से वंचित रखने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते आ रहे हैं। शिक्षण शुल्क में अनापशनाप बढोतरी इसका सबसे बडा प्रमाण है। बिहार जैसे गरीब सूबे के लोगों से उनके बच्चों के प्रति सेमेस्टर 18 हजार रुपए शुल्क वसूलना और उन बच्चों को किसी तरह की छात्रवृत्ति न देना बिहार के गरीब परिवार के बच्चों के साथ क्रूर और शर्मनाक मजाक है।
उपरोक्त सारी स्थितियों का राष्ट्रपति महोदय को संज्ञान लेकर संबंधित मंत्रालय को इस बारे में कार्रवाई के लिए उचित निर्देश देना चाहिए ताकि विश्वविद्यालय में स्वस्थ शैक्षणिक माहौल की बहाली हो सके।
