
बिहार ब्रेकिंग

सर्चलाईट पटना का एक ऐसा दैनिक अख़बार था, जिसके संपादक आजादी की लड़ाई के दिनों में भी जेल गए तो दुसरे संपादक आजादी के बाद। पहले संपादक मुरली मोहन प्रसाद थे तो दुसरे थे टी एस जॉर्ज। इस अख़बार ने सच को उजागर करने के लिए काफी कुछ सहा। कई बार राज्य सरकार ने न सिर्फ उसके सरकारी विज्ञापन बंद किये बल्कि 1974 के आंदोलन के समय अराजक तत्वों ने अख़बार की बिल्डिंग में आग तक लगा दी। लेकिन फिर भी इस अख़बार ने कभी समझौता नहीं किया। इस अख़बार के तेवर और इसकी निष्पक्षता के एक आधार स्तम्भ थे सर्वदेव ओझा, जो इस अख़बार में संयुक्त संपादक थे।
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जब अख़बार की बिल्डिंग धू धू कर जल रही थी तो यही वो पत्रकार थे जिन्होंने सड़क पर बैठकर अपने सहयोगियों के साथ खबर लिखी और फिर उसे दुसरे प्रिंटिंग प्रेस में जाकर प्रकाशित किया। एक सप्ताह तक वो अपने घर नहीं लौटे क्योंकि उन्हें हुकूमत को यह अहसास दिलाना था कि बिल्डिंग जला देने से भी हौसले नहीं टूटे हैं। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने एक आदेश जारी किया था कि “द सर्चलाईट” झूठी और मनगढ़ंत कहानियो को प्रकाशित करने पर अमादा है तो इसलिए इसे बंद कर देना चाहिए। यह दौर था जे पी आन्दोलन का। इस आदेश के खिलाफ सर्वदेव ओझा द्वारा एक विरोध पत्र तैयार किया गया। तब वे सर्चलाईट के संयुक्त संपादक थे। इस विरोध पत्र पर पहला हस्ताक्षर सर्वदेव ओझा का था उसके बाद महामाया प्रसाद सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर थे। आखिरकार सरकार को अपना यह आदेश वापस लेना पड़ा था। सर्चलाईट का सम्पादकीय सर्वदेव ओझा ही लिखा करते थे।
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बिहार के जहानाबाद (अब अरवल) जिले के मेहेन्दिया थाना क्षेत्र के कोइल भूपत गाँव के रहने वाले सर्वदेव ओझा अपने तीन भाइयो में सबसे बड़े थे। उनके अनुज थे सहदेव ओझा और गोविन्द देव ओझा, उनके पिता का नाम था पतिराम ओझा। गाँव के ही स्कुल से पढाई करने वाले सर्व देव ओझा विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके कॉलेज की पढाई बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पूरी हुई थी। उन्होंने अंग्रेजी में डबल एमए की थी। पटना में सर्चलाईट ज्वाइन करने के पहले उन्होंने देश के कई प्रमुख अखबारों के लिए काम किया था जिनमे डेक्कन हेराल्ड, ट्रिब्यून जैसे अख़बार भी थे। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ साथ पत्रकारिता के धर्म का निर्वहन करते हुए सर्वदेव ओझा ने सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत कार्य किये। जिसे इलाके के लोग आज भी याद करते है। जेपी आन्दोलन के समय सर्वदेव ओझा ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। साठ के दशक में टी एस जार्ज ने बिहार सरकार के भ्रष्टाचार और ज्यादतियों को उजागर करना शुरू किया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री के बी सहाय ने जॉर्ज को जेल भिजवा दिया। के बी सहाय के खिलाफ जनता उठ खड़ी हुई। टी एस जॉर्ज के जेल जाने के बाद भी अख़बार के तेवर में कोई कमी नहीं आई। अख़बार का सम्पादकीय एस डी ओझा के हाथ में था। तेवर कम नहीं हुए। 1969 के चुनाव में पहली बार बिहार में कांग्रेस की सता चली गई थी।
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सर्वदेव ओझा ने पत्रकारिता के उसूलों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने देश के कई नामचीन पत्रकारों के साथ काम किया। जून 1981 में घर से ऑफिस जाने के दौरान एक दुर्घटना के शिकार हुए फिर 10 जून 1981 को पटना के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। उनके बाद उनके भतीजे अवधेश ओझा ने भी पत्रकारिता जगत में अपनी बड़ी पहचान बनाई। पटना से प्रकाशित दैनिक आज और दैनिक हिंदुस्तान में एक लम्बी अवधि तक पत्रकारिता की।