
बिहार ब्रेकिंग-मंजेश कुमार

बिहार केशरी श्रीकृष्ण सिंह, नाम सुनते ही जेहन में सबसे आता है अखंड बिहार के विकास के प्रणेता। उन्हें अविभाजित बिहार के विकास के लिए अतुलनीय, अद्वितीय और अविस्मरणीय योगदान के लिए बिहार निर्माता भी कहा जाता है। ये इन्होने बिहार को उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में जो ऊंचाई प्रदान की वह अद्वितीय है। बिहार केशरी ने बिहार को आजाद भारत की पहली रिफाइनरी बरौनी रिफाइनरी दी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना सिंदरी और बरौनी खाद कारखाना दिया, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत बहुमूल्य चीजें दी। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।
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21 अक्टूबर 1887 को तब के मुंगेर जिलांतर्गत माउर गांव (अब शेखपुरा) में जन्मे श्री कृष्ण सिंह ने अपने बेगूसराय के गढ़पुरा को अपना कर्मस्थली बनाया और गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधीजी के आह्वान पर मुंगेर से गंगा नदी पार कर लगभग 100 किलोमीटर लंबी दुरूह व कष्टप्रद पदयात्रा कर गढ़़पुरा के दुर्गा गाछी में अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के काले नमक कानून को तोड़ा था। इस दरम्यान ब्रिटिश फौज़ के जूल्म से उनका बदन नमक के खौलते पानी से जल गया था, पर वह हार नहीं माने थे। गढ़़पुरा के इस ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार के प्रथम सत्याग्रही कहा था।
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देश के आजाद होने के बाद आजाद भारत में वे बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने थे और 2 अप्रैल 1946 से 31 जनवरी 1961 तक वे अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। उनके शासनकाल में बिहार ने आजाद भारत में विकास की वह गति पकड़ी थी जिसकी कहानी आज भी कही और सुनी जाती है। बिहार केशरी को लोग आज भी जननेता और विकासवादी के रूप में जानते हैं। वे एक महान शिक्षाविद भी थे और महान राजनेता भी। वे हमेशा राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ रहे थे और कांग्रेस के एक सच्चे और इमानदार नेता भी। बताया जाता है कि जब बिहार केशरी का निधन हुआ था तो तत्कालीन राज्यपाल के समक्ष जब उनका तिजोरी खोला गया था तो उनके तिजोरी में मात्र 24500 रूपये मिले थे वे भी चार लिफाफों में रखे थे। लिफाफों पर नाम भी लिखा था जिसके लिए उन्होंने पैसे रखे थे जिसमे एक पर कांग्रेस प्रदेश कमिटी का नाम था, दुसरे पर मुनीम जी की बेटी की शादी के लिए, तीसरे पर महेश प्रसाद सिन्हा की छोटी बेटी के लिए तो चौथे पर उनकी सेवा करने वाले खास नौकर के लिए था।