
-मंजेश कुमार

बिहार डेस्कः किसी सूबे में अगर भूख से किसी बच्चे की मौत हो जाए तो निःसंदेह इसे सरकार की बड़ी विफलता कहा जा सकता है। उस व्यवस्था पर सवाल उठाये जा सकते हैं जिसके तहत गरीबों के कल्याण की उनकी सुविधाओं की बात होती है। बिहार के बक्सर जिले के कोरानसराय गांव में भूख से मौत मामले ने एक सवाल भी लाकर खड़ा कर दिया है कि क्या ऐसे मामले सियासत की खुराक बन जाते हैं? भूख से मौत मामले की पूरी सच्चाई अभी सामने नहीं आयी है। मृतकों की मां ने यह जरूर कहा है कि उनके बच्चों ने भूख से दम तोड़ा है। दूसरी तरफ प्रशासन का कहना है कि बच्चे बीमारी से मरे हैं। बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री ने भी इस घटना पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने अधिकारियों से बात कि है और अधिकारी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर यह दावा कर सकते हैं कि बच्चों की मौत भूख से नहीं हुई है। तो सवाल यही है कि क्या इस घटना को राजनीतिक रंग दे दिया गया है। क्या अपने दो बच्चों को गंवा देने वाली धन्नो देवी का दर्द कुछ सियासत दानों के लिए दवा बन गयी है। चुनावी मौसम में विपक्ष ने इसे सरकार को घेरने का हथियार बनाया? यह सवाल इसलिए है क्योंकि तस्वीर स्पस्ट नहीं है कि इस मामले को लेकर सरकार को घेर रही विपक्षी पार्टियों की संवेदना क्या इतनी जागृत है कि सियासत भूल जाएं और उस महिला के साथ खड़े हों। दरअसल इस घटना ने भूख को दो तरह से परिभाषित किया है। एक भूख कथित रूप से जिससे दो बच्चों ने दम तोड़ा है दूसरी भूख सियासी प्रतिशोध की जिसकी आंच में संवेदनाएं अक्सर झुलस कर रह जाती है। अगर उन बच्चों ने भूख से दम तोड़ा है तो वाकई बड़ा सवाल है कि यह स्थिति क्यों है कि बच्चे भूख से दम तोड़ देते हैं? यह भी जानना जरूरी है कि बिहार में सरकार गरीबों के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाती है। गरीबों के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था है। गरीब बच्चों के लिए मिड-डे मिल योजना है। क्या इन योजनाओं में इतनी बड़ी लिकेज है, इतनी बदइंतजामी है इतना गड़बड़झाला है कि बच्चे भूख से दम तोड़ रहे हैं या फिर चुनावी मौसम गड़बड़ियों का सारा ठीकर सरकार के सर फोड़ने की परंपरा निभायी जा रही है। बच्चों की भूख से मौत मामले की पूरी सच्चाई अभी सामने नहीं आयी है लेकिन उससे पहले सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच इस सवाल के भी जवाब तलाशे जाने चाहिए संवेदनाओं की कब्र पर सियासत की कोंपले उगती हैं?