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देश के सबसे पुराने केस में से एक अयोध्या विवाद पर फैसला आ गया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है। रामलला का हक माना गया है। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अलग जगह जमीन देने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है।
अपना एकाधिकार सिद्ध नहीं कर पाए मुसलमान
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 1885 से पहले हिन्दू अंदर पूजा नहीं करते थे। बाहरी अहाता में रामचबूतरा सीता रसोई में पूजा करते थे। 1934 में दंगे हुए। उसके बाद से मुसलमानों का एक्सक्लूसिव अधिकार आंतरिक अहाते में नहीं रहा। मुसलमान उसके बाद से अपना एकाधिकार सिद्ध नहीं कर पाए। हिन्दू निर्विवाद रूप से बाहर पूजा करते रहे। 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया। रेलिंग 1886 में लगाई गई।
विवादित जमीन पर रामलला का अधिकार
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन पर रामलला का दावा मान्य है। इस जमीन पर मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया है। केंद्र सरकार ही ट्रस्ट के सदस्यों का नाम निर्धारित करेगी। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया। इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया गया है। वैकल्पिक जमीन को केंद्र और योगी सरकार अयोध्या में देगी। राम जन्मभूमि न्यास को भी जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया गया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन का बाहरी और आंतरिक हिस्से पर रामलला का हक है।
ट्रस्ट को सौंपी जाएगी विवादित और अधिग्रहित जमीन
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ट्रस्ट में सदस्यों को चुने जाने का अधिकार दिया है। तीन महीने में ट्रस्ट बनने के बाद विवादित जमीन और अधिग्रहित भूमि के बाकी हिस्से को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद ट्रस्ट राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा। निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में जगह मिलेगी।
इस संवैधानिक पीठ ने सुनाया फैसला
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया. इस पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने फैसला सुनाया। खास बात है कि यह फैसला पांचों जजों की सर्वसम्मति से सुनाया गया है।