
बिहार ब्रेकिंग-रविशंकर शर्मा-पटना ग्रामीण

वैसे तो बिहार में सामान्य तौर पर चावल दाल गेहूँ गन्ना तेलहन मक्का आदि की ही खेती पारंपरिक तौर पर होती रही है। हालाँकि राज्य और केंद्र सरकार किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। परंतु जैविक खेती जितनी भी होनी शुरू हुई है उसमें खासतौर पर पारंपरिक फसलें ही शामिल है। परंतु मोकामा के हाथीदह के चार युवा स्नातक किसानों ने औषधीय खेती की शुरूआत कर एक नजीर प्रस्तुत किया है जिससे वे खुद तो अच्छी कमाई कर ही सकते हैं साथ ही अन्य किसानों के लिये भी कमाई का एक अच्छा रास्ता दिखा रहे हैं।
नीतीश स्नातक हैं और अपने अन्य तीन साथियों के साथ नौकरी कि तलाश छोड़कर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। इसके लिये भागलपुर सबौर कृषि महाविद्यालय से प्रशिक्षण लेकर उन्नत एवं पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से खेती कर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गये हैं। स्ट्रॉबेरी का सरकारी मूल्य यूँ तो डेढ़ सौ रुपये प्रति किलो है पर उतपादन कम और माँग अधिक होने के कारण ये 300 रुपये प्रति किलो तक बिकता है जबकी एक बीघे में 8 हजार किलो तक उत्पादन आसानी से हो जाया करता है। अब आप खुद सोंचिये की भला ये युवा किसान नौकरी क्यों करें? आने वाले वक्त में ये अपनी खेती का विस्तार करेंगे साथ ही कई अन्य औषधियों का उत्पादन करेंगे।