
बिहार ब्रेकिंग-रविशंकर शर्मा-पटना ग्रामीण

जानिए क्या है स्टॉकहोम सिंड्रोम? अपराधी अथवा अपराध के आरोपी को सजा मिलने या कानूनी शिकंजे में फंसने पर उसे पीड़ित समझकर उसके प्रति सहानुभुति रखना या किसी रूप में दया का भाव प्रकट करना ही स्टॉकहोम सिंड्रोम कहलाता है। जो आजकल अक्षरसः अनंत सिंह के मामले में लागू होता दिख रहा है। जिस तरह बिहार के भूमिहार अनंत सिंह को शोषित और पीड़ित समझ कर सहानुभुति प्रकट कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वाकई बिहार और यहाँ के भूमिहार जाति को इससे बाहर निकलने की जरूरत है। मैं नही कहता कि राजनीति में सिर्फ अनंत सिंह ही अपराध जगत से आये और सफल हुए बल्कि ऐसे दर्जनों नाम हैं। लेकिन राजनीति के साथ लगातार आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहने वाले शायद वे अकेले नेता हैं। जिन्होंने अपराध छोड़कर राजनीति में कदम रखा ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी तो है पर राजनीति में आने के बाद तुलनात्मक रूप से उनके उपर हुए मुकदमों का अध्ययन करें तो पायेंगे, शायद ही इक्का दुक्का मुकदमा हुआ हो।
लेकिन अनंत सिंह के मामले में ये बात साफ उल्टा है। अनंत सिंह सत्ता की शक्ति मिलने के बाद और अधिक अपराध के आरोपी बनते चले गए जबकी उनके कई समकक्ष अपराध को छोड़ मुख्यधारा से जुड़ते चले गए। कर्म का फल सबको भुगतना पड़ता है, अनंत सिंह पर कुल 53 संगीन वारदातों के मुकदमे दर्ज हैं जिसमे दो दर्जन से भी अधिक उनके राजनीति में आने के बाद दर्ज हुए। उसके बाद भी वे और उनके समर्थक खुद को भूमिहारों का खेवनहार बताने की कोशिश में कमी नही छोड़ रहे और अब जब कार्रवाई हो रही है तो भूमिहारों को लग रहा है कि अनंत सिंह को फँसाया जा रहा है? इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा, वरना आप जाति की आड़ में खुद के लिये यूँ ही बबूल के पेड़ को सींचते रहेंगे।
प्रियदर्शन शर्मा ने भी सोशल मीडिया में ये लिखा है। उन्होंने बाकायदा उदाहरण के साथ बताया भी है। लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने लिये कुछ भी नही लिखता, आप समझें तो समाज का भला ना समझें तो फिर आपका कर्म फल भी समय तय करता है। प्रियदर्शन लिखते हैं”। कई बार शोषक के प्रति ही सहानुभूति आ जाती है। आप जिससे परेशान हों, जो आपकी बर्बादी और बदनामी का कारण हो उसके लिए भी आपके दिल में दया आ जाती है। और तब इसे स्टॉकहोम सिंड्रोम कहा जाता है।” दरअसल 23 अगस्त, 1973 की दोपहर स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में यान-एरिक ओलसन चुपचाप क्रेडिटबांकेन (बैंक) में घुसा। उसने वहां अपने कपड़ों में छिपा कर लाई गई हल्की मशीनगन निकाल ली और चार बैंककर्मियों को बंधक बना लिया। सरकार की ओर से बंधकों को छुड़ाने के प्रयास किए जाने लगे। लेकिन, पांच दिन बीतते बीतते बैंक वालों के दिल में अपहर्ता के ही प्रति दया और सहानुभूति छाने लगी। यानी जो बंदूक ताने मारने को तैयार है, उन्हीं पर दया आ जाना। स्टॉकहोम में 23 अगस्त से 28 अगस्त, 1973 की इस घटना ने मनोविज्ञानियों को परेशान कर दिया। इसे एक इंसानी जटिलता के तौर पर पारिभाषित किया गयाः स्टॉकहोम सिंड्रोम। यानी शोषन का शिकार व्यक्ति का अपना सुध बुध खो देना और शोषक के प्रति समर्पित हो जाना। मोहब्बत करने वाले अक्सर स्टॉकहोम सिंड्रोम के शिकार होते हैं। आप देखे होंगे कि भले कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी का उत्पीड़न करे लेकिन वह प्रेमिका सब कुछ सहकर भी उसी को देवता की भांति मानती है। यानी वह उस दौर में स्टॉकहोम सिंड्रोम के गिरफ्त में रहती है। ये एक मनोवैज्ञानिक दुर्दशा है! जटिल स्थिति है।
देखा जाए तो बिहार को बदहाल और बदनाम करने वालों के प्रति बिहारी जनमानस का एक बड़ा वर्ग स्टॉकहोम सिंड्रोम का ही शिकार हो चुका है । अब देखिए न आज भी आपको करोड़ों ऐसे लोग मिल जायेंगे जो बिहार में लालू-राबड़ी राज को स्वर्णिम काल कहेंगे। कई लोग मिलेंगे जो शहाबुद्दीन जैसे अपराधी के प्रति सहानुभूति रखते हैं। यानी जिन लोगों के कारण बिहार शब्द एक ‘गाली’ बन गया वही लोग और उनके जैसे आचरण वाले कई लोग ही आज भी समाज के लिए ‘आदर्श’ बने हुए हैं। ताजा उदाहरण मोकामा से निर्वाचित निर्दलीय विधायक अनंत सिंह का ही देखें। अनंत सिंह का इतिहास भूगोल देखेंगे तो स्पष्ट हो जाता है कि कैसे दर्जनों संगीन अपराध का आरोपी व्यक्ति सत्ता की चाकरी कर राजनीति से व्यपार तक सफलता के शीर्ष मुकाम को छू लेता है। मानो जैसे कोई फिल्मी दुनिया की कहानी हो। लेकिन जैसे फिल्मों में विलन को अंततः विलन बताया ही जाता है वैसे ही अब जब सरकार ने आंख तरेरी तो स्वघोषित छोटे सरकार के घर से एके 47 मिला। यह कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। 2005 में NDTV ने पूरी खबर दिखाई थी कैसे विधायक अनंत अपने समर्थकों के बीच बंदूक लहरा रहे हैं। आप गूगल पर देख सकते हैं।
खैर , बात मौजूदा दौर की। तो अनंत सिंह के घर से एके 47 मिलने के बाद अब जिस प्रकार से एक जाति विशेष के कुछ लोग इसे नीतीश सरकार का ब्रह्मर्षि विरोध बता रहे हैं, कायदे से यह लोगों का स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रसित होना ही है। अरे भाई आप जिसे संत बनाने पर तुले हैं उस जैसे लोगो को पूरा देश शैतान मानता है। ब्रह्मर्षि समाज के रसातल में जाने का एक बड़ा कारण हाल के वर्षों में इस समाज का अपराधियों के प्रति स्टॉकहोम सिंड्रोम का शिकार हो जाना भी है। काश, स्टॉकहोम सिंड्रोम से बाहर आये यह समाज, तभी इनका भी और राज्य का भी भला होगा।