
बिहार ब्रेकिंग-रविशंकर शर्मा-बाढ़

किसी शायर ने क्या खूब कहा था कि घास की छानी उड़ी थी आँधियों के साथ कल, आज आटा दाल भी गिला हुआ बौछाड़ में।उक्त पंक्तियाँ अगर इक्कीसवीं सदी के भारत मे आज भी प्रासंगिक हो तो यह कहना कि हम 2022 तक सबको पक्का घर दे देंगे या हम विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहे हैं, निहायत ही दिल को बहलाने वाली और बेईमानी भरी बातें होंगी। आजादी के सत्तर से भी अधिक सालों के बीत जाने के बाद भी अगर किसी राज्य के राजधानी जिले में स्थित मिट्टी का घर धराशायी हो जाय और उसमे रहने वाले सड़क पर रहने को विवश हों तो ऐसे में सुशासन की पोल खुलते देर नही लगती।
ताजा घटना है मोकामा प्रखंड क्षेत्र के कन्हाईपुर ब्रह्मस्थान का रहने वाला शंभू यादव के मिट्टी से बने घर के धराशाई होने की। घर सोमवार को अचानक रेत की दीवार की तरह गिर गया। बताया जाता है कि शंभू अपने पत्नी और बच्चे के साथ उस वक्त घर में ही थे। अचानक गिरने की आवाज सुनकर घर से बाहर दौड़े और मिट्टी का बना घर धराशाई हो गया। हालांकि इसमें कोई हताहत की सूचना नहीं है, और सभी लोग बाल-बाल बच गए। मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला शंभू यादव ने बताया कि उन्हें कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है बीपीएल सूची से भी वंचित रखा गया है।
अब सवाल ये उठता है कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के आँखोँ पे कौन सी पट्टी बँधी है जो मिट्टी के घर मे रहने बालों को बी पी एल में भी अब तक शामिल नही किया गया। जबकी दस और बीस बीघे तथा पक्के मकानों के मालिक बी पी एल में दर्ज हैं। ये धरातल की सच्चाई है जो सूबे के हर पंचायत में देखने को मिल जाएगी। चूँकि पीड़ित का नाम गरीबी रेखा से नीचे में दर्ज नही है अतः उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी शायद ही मिले। इस मामले पर मोकामा के प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा है कि इस अवस्था मे सरकारी नियमों के अनुसार नौ हजार आठ सौ रुपये की सहायता राशि तत्काल दी जाएगी। सोंचने की बात है कि क्या दस हजार रुपये में ऐसा कोई व्यस्था बनाया जा सकता है जो पीड़ित को छत दे सके?