
बिहार ब्रेकिंग

एईएस पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पटना एम्स, आरएमआरआई और वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ समीक्षा बैठक की। केंद्रीय मंत्री चौबे ने कहा-सरकार एईएस पर गंभीर-सभी महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे है।
एईएस पर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पटना एम्स और आरएमआरआई के पदाधिकारियों-चिकित्सकों के साथ समीक्षा किया। इस बैठक में पटना एम्स के निदेशक, उप निदेशक, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट सहित विभिन्न विभागों के प्रमुख सहित अनेक चिकित्सकों और आरएमआरआई के वैज्ञानिकों सहित अनेक चिकित्सक, आई एम ए के पूर्व अध्यक्ष डॉ सहजानंद प्रसाद सिंह और प्रसिद्ध बालरोग विशेषज्ञ डॉ सुमन शामिल हुए। बैठक में बिहार में फैले जानलेवा एईएस के बारे में गठित केंद्रीय मेडीकल टीम के जांच-शोध पर विस्तार से चर्चा हुई। एईएस के वर्तमान स्थिति, इसके रोकथाम पर प्रभावी कदम तथा आगे से इसपर पूर्ण लगाम के उपायों पर पूरी तैयारी समय पूर्व कर लेने पर चर्चा के बाद केंद्रीय मंत्री श्री चौबे ने इसपर पूर्ण नियंत्रण के लिए सभी महत्वपूर्ण कदम उठाने का निर्देश दिया।
केंद्रीय मंत्री के मीडिया प्रभारी वेद प्रकाश ने बताया कि बैठक में विभिन्न विशेषज्ञों ने बताया कि बीमारी फैलने के बाद गठित केंद्रीय टीम मुजफ्फरपुर में डेरा डालकर लगातार रुक कर रोग फैलने के सभी संभावित जांच और शोध के आधुनिक तरीकों को अपनाया गया है। इसमें पटना और दिल्ली से ले जाकर आधुनिक मशीनों से प्रभावित बच्चों के बायोकेम, अमोनिया ऐस्टीमेशन, लीवर इंवॉल्वमेंट, मस्क्यूलर इंवॉल्वमेंट, हिपैटिक, ब्रेन, शुगर की सहित ऑर्गन डिस्फंक्शनल होने आदि से संबंधित सभी जांच की गई जिससे स्पष्ट होता है कि यह संक्रमण वाला रोग नहीं है जापानी इंसेफेलाइटिस की भी संभावना निम्न है। हाइपोग्लाइसीमिया एक महत्वपूर्ण कारण है जिसके कारण प्रभावित बच्चों में शुगर की 90% तक की कमी पाई गई लेकिन इसमें लीची वाला कारण ज्यादा प्रभावी नहीं है। देश के सभी प्रमुख जांच संस्थानों में प्रभावित बच्चों का सीरम और सीएसएफ (रीड की हड्डी से संबंधित जांच) का सैंपल भेजा गया। इसके अतिरिक्त मसल्स का टुकड़ा निकालकर उसको सेल डैमेज लांच के लिए भी भेजा गया है। हिट और ह्यूमिडिटी के अनुपातिक जांच से पता चलता है कि इसका मुख्य कारण हीट स्ट्रोक और न्यूट्रीशनल भोजन की कमी रही। बारिस होते ही वातावरण के तापमान में कमी के कारण इसमें अचानक कमी देखी गई। जहां पहले प्रतिदिन 40-50 बच्चे अस्पताल में भर्ती होते थे अब उनका औसत 3-4 पर आ गया है। सबसे ज्यादा इस रोग में प्रभावित 3 से 4 वर्ष के उम्र के बच्चे रहे।
चौबे ने बताया कि “आगे से इसके प्रभावी रोकथाम हेतु ज्यादा आईसीयू की स्थापना, अत्याधिक गर्मी के समय 2 महीने तक पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज, ओ आर एस और दवाई की पूर्व से उपलब्धता, मिड डे मील की तर्ज पर इवनिंग मिल उपलब्ध कराना,बीमार बच्चों को तुरंत हॉस्पिटल में पहुंचाने की उपलब्धता, बच्चों के लिए 2 महीने का टेंपरेरी सेल्टर होम की व्यवस्था, आंगनबाड़ी के माध्यम से न्यूट्रीशनल भोजन की उपलब्धता, खाने में फोर्टीफिकेशन को बढ़ावा देना, पर्याप्त पानी की उपलब्धता आदि जैसे सुझाव आए हैं जिस पर आगे से कार्यान्वयन पर विचार हुआ है। इसके अतिरिक्त बरसात के मौसम में फैलने वाली बीमारियों के रोकथाम के बारे में भी विचार-विमर्श हुआ। केंद्र सरकार और बिहार सरकार इस मामले में बहुत गंभीर है और लगातार स्थिति पर नजर रखते हुए सभी पर्याप्त कदम स्वरित गति से उठा रही है आम जनता से स्वास्थ्य के बारे में सरकार की प्रतिबद्धता पूर्ण रूप से है और इसमें कोई भी कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी”।
बैठक में पटना एम्स के डायरेक्टर डॉ प्रभात कुमार सिंह, डिप्टी डायरेक्टर डॉ परिमल सिन्हा, सुपरिटेंडेंट डॉ सी एम सिंह, डॉ एके सक्सेना, डॉ मीनाक्षी तिवारी, डॉक्टर अनिल कुमार, आर एम आर आई के डॉ मधुकर, डॉ आशीष कुमार पाठक, डॉक्टर रोशन कमल टोपनो, आईएमए बिहार के पूर्व अध्यक्ष डॉ सहजानंद प्रसाद सिंह प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुमन सहित दो दर्जन से ज्यादा वैज्ञानिक चिकित्सक और चिकित्सा पदाधिकारियों ने भाग लिया।