
पूजा-पाठ में प्रयोग किये जानेवाली दूब घास औषधीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है़ इसकी लता जमीन पर फैलती है़ इसमें प्रत्येक जोड़ से जड़ निकलकर जमीन पर फैलती है़ पत्ते लंबे, रेखाकार, पतले और एक से चार इंच लंबे होते है़ं फूल रहा या बैंगनी रंग का होता है़ बीज अत्यंत छोटे होते है़ं यह घास दो तरह की होती है. हरा : यह बड़े आकार का होता है और सफेद जिसका आकार छोटा होता है, लेकिन औषधीय दृष्टिकोण से यह ज्यादा महत्वपूर्ण है़ संस्कृत में इसे दुर्वा, हिंदी में दूब कहते है़ं इसका वानस्पतिक नाम सायनोडोन डेक्टायलोन है. यह पाेएसी परिवार की घास है़ इसका उपयोगी भाग पंचांग है़ यह कफवात और पित जनित बीमारियों में उपयोगी है़ दूब घास शीतल प्रकृति की होती है. यह इसकी सबसे बड़ी विशेषता है़ यह स्वाद में कसैला, मीठापन व कुछ कड़वाहट लिए हुए होती है़ यह घास खून साफ करती है़ पेट और शरीर में जलन की समस्या दूर होती है. त्वचा को स्वस्थ रखती है. इससे जख्म भरता है़ रक्त स्राव रूकता है. दूब घास शरीर की दुर्बलता दूर करती है़ जहरीले कीड़े-मकौड़े के कांटने पर इसका रस प्रयोग किया जाता है़ नेत्र रोग, नाक से खून आना, उल्टी, मुंह के छाले, हैजा, दस्त, चर्म रोग आदि में यह उपयोगी है़
