
बिहार ब्रेकिंग

बीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब लालू प्रसाद यादव बिहार की बागडोर संभाले और अगड़े पिछड़े के बीच तनाव का माहौल उत्पन्न हुआ, तो उस दौरान आनंद मोहन जैसे स्वर्ण नेता ने अपने वाकपटुता और कार्यशैली के कारण बिहार का सवर्ण समाज में एकछत्र नेता के रूप में अपनी पहचान बना ली। तथा लोकतंत्र की जननी वैशाली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इनके पत्नी लवली आनंद को जीत दर्ज कराकर इस पर मुहर लगाने का काम भी किया। इसी के साथ सत्येंद्र बाबू के बाद बिहार के सबसे बड़े राजपूत नेता के रूप में इन्हें मान्यता समाज में मिल गई। हालांकि 1995 के विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की इनकी भूल ने सम्मानजनक वोट का प्रतिशत हासिल करने के बावजूद मात्र एक सीट हासिल करने में ही यह कामयाब हो सके थे। चुनाव के बाद नीतीश कुमार के साथ इन्होंने गठबंधन किया और नबीनगर विधानसभा उपचुनाव में अपने पत्नी को वहां से विधायक बनाने में कामयाब रहे। लेकिन कार्यशैली और विचारों में भिन्नता के कारण नीतीश कुमार से आनंद मोहन की दोस्ती लंबी नहीं चल सकी।
बिहार में राजनीति गठबंधन की मजबूरी को देखते हुए इन्होंने समय-समय पर राजनीतिक दलों से गठबंधन या फिर समर्थन और विरोध का सिलसिला जारी रखा। इसी बीच जी कृष्णय्या हत्याकांड में इन्हें सजा हो गई और आज भी वे सहरसा जेल में बंद हैं। इसके बावजूद बिहार में आनंद मोहन के समर्थकों की एक बड़ी फौज है। और यही कारण है कि खासकर उनके वर्ग से जो लोग राजनीति में हैं, वह कभी भी आनंद मोहन के पक्ष में इमानदारी पूर्वक खड़े नहीं हुए। यहां तक कि कई लोग उनके आशीर्वाद से आज विधानसभा में पहुंचे हैं वो भी अपनी राजनीतिक स्वार्थ के लिए अलग रास्ता बना लिया। बिहार के खासकर राजपूत नेताओं में आनंद मोहन के उत्थान से अपने अस्तित्व का भय सताने लगता है।
राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस आदि राजनीतिक दलों में अपनी जमीन तलाशने के बाद पुनः आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भाजपा गठबंधन के साथ खड़ी हो गई है। और उनके राजनीतिक मजबूरी का फायदा उठाते हुए इस गठबंधन ने एक बेबस और लाचार राजनीतिज्ञ के रूप मे उन्हें मैदान में उतारने का षडयंत्र रचा। बिना जानकारी और तैयारी के अचानक काराकाट लोकसभा के गांव में लवली और उनके बेटे को एक दो काार्यकर्ता के साथ राजपूत बाहुल्य गांवों में भेज दिया गया। इसके चलते आनंद मोहन के समर्थकों में निराशा और हताशा के भाव स्पष्ट नजर आ रहे है। उन्हें शाहाबाद गांव में इस रूप में घूमने के लिए उतारा गया है जैसे कोई नेता नहीं बल्कि पार्टी का एक सामान्य कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से मेल मिलाप कर वोट का निवेदन करता है। यह आनंद मोहन या लवली आनंद की राजनीतिक मजबूरी हो सकती है या फिर उनको साजिश के तहत इस तरहसे चुनाव मैदान में उतारा गया हो। लेकिन इस अंदाज से उतरने के कारण उनके समर्थकों में निराशा स्पष्ट दिख रही है।