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कहते हैं कि अगर जज्बा हो तो हालात आपको आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है छपरा के दरियापुर प्रखंड अंतर्गत जलालपुर गांव निवासी एक किसान परिवार में जन्मे डॉ लैलेश ने. लैलेश के माता पिता की माली हालत कुछ ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने दुसरे के खेतों में काम कर बेटे को पढ़ाया और बेटा आज दक्षिण कोरिया के टॉप विश्वविद्यालय सिओल नेशनल यूनिवर्सिटी में पोस्ट डाक्टरल रिसर्चर के पद पर है. लैलेश ने बताया कि उनकी मां स्व. बसंती देवी और पिता सुरेंद्र सिंह खुद तो अशिक्षित थे लेकिन लैलेश की प्रतिभा को देख कर उन्होंने मन में ठान लिया कि चाहे जो करना पड़े बेटे को शिक्षित करेंगे. लैलेश बताते हैं कि उनकी पढाई के लिए उनकी मां अकेले ही वर्ष 1995 में छपरा से चल कर करीब साठ किलोमीटर दूर दानापुर पैदल चलकर पहुंची थी और बेटे को दानापुर में एक हॉस्टल में रखा था ताकि उनकी पढाई ठीक से हो सके. बेटे को अच्छी शिक्षा देने की मां की जिद के आगे पिता मजबूर हुए और उन्होंने अपनी जमीन बेच कर बेटे का नामांकन गोलपारा असम स्थित सैनिक स्कूल में करवाया और खुद दुसरे के खेतों में काम करने लगे. सैनिक स्कूल का खर्चा अधिक होने के कारण माता पिता दोनों के मेहनत करने के बावजूद कम पड़ रहा था तो इस घड़ी में उन्हें रिश्तेदारों का भी भरपूर सहयोग मिला. लैलेश ने अपनी दसवीं और बारहवीं की परीक्षा 75% से अधिक अंकों के साथ पास किया और फिर पश्चिम बंगाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग 85% अंकों से पूरा किया. लैलेश की इंजिनियरिंग करने के दौरान ही उनकी मां चल बसीं. लेकिन न तो लैलेश ने हिम्मत हारी और न ही उनके पिता ने. बेटे की प्रतिभा और सफलता ने पिता का आत्मविश्वास इतना मजबूत कर दिया कि उस आत्मविश्वास के आगे मजबूर होकर लैलेश को नौकरी छोड़ दुबारा एनआईटी राउरकेला में पढाई शुरू करनी पड़ी.
वर्ष 2014 में लैलेश को स्कॉलरशिप भी मिला जो कि काफी मददगार साबित हुआ और लैलेश ने मेहनत जारी रखी. वह एनआईटी राउरकेला में रिसर्च स्कॉलर के अध्यक्ष भी थे और फिर निर्विरोध महासचिव भी चुने गये. लैलेश ने वर्ष 2017 में अपनी डॉक्टरेट की पढाई पूरी की और फिर 2 वर्षो के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस, बंगलोर में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर बने. लैलेश अपनी मातृभाषा भोजपुरी और राष्ट्रभाषा हिंदी के अलावे अंग्रेजी समेत कुल छः भाषाओँ के भी जानकार हैं. तत्पश्चात उनका चयन विश्व के टॉप 30 इंस्टीट्यूट सिओल नेशनल यूनिवर्सिटी में हुआ और वे वहां पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर के पद पर आसीन हैं. लैलेश अपने प्रखंड के पहले विद्यार्थी हैं जो पोस्ट डॉक्टरेट के लिए विदेश गए हैं. लैलेश दहेज़ प्रथा के सख्त खिलाफ हैं और उन्होंने बिना दहेज़ के शादी की. लैलेश आज अपने जिले के नवयुवकों के लिए रोल मॉडल के तौर पर हैं और नवयुवक अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के लिए मेहनत करते हैं. लैलेश अपने जिले के बच्चों की शिक्षा संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और उनकी कोशिश है कि वे कुछ ऐसा करें कि कोई गरीब गरीबी के कारण अच्छी शिक्षा से वंचित न रह सकें.