
पटना: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्राथमिकता होती है। लेकिन, ऐसा न हो पाना किसी भी सिस्टम के लिए चिंता का विषय है। गौर कीजिए कि अगर राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाना शुरू कर दें, मीडिया लोकतांत्रिक मूल्यों को भूलकर पूंजीपतियों का हिमायती बन जाए, वोटर्स ईमानदार के बजाय एक अपराधी को वोट देना शुरू कर दें तो, इस व्यवस्था का क्या होगा? यकीनन, हर तरफ अराजकता का माहौल पैदा हो जाएगा और सिस्टम पंगु हो जाएगा। जाहिर है, ऐसी स्थिति से बचने के लिए कई स्तरों पर सुधार की दरकार है। 2016 में चुनाव आयोग ने देश में चुनाव सुधार के लिए कुछ सुझाव दिए थे। इन सुझावों में एक यह भी था कि निष्पक्ष चुनाव के लिए पेड न्यूज, ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल पर बैन लगाया जाए। दरअसल, ये वो कोशिशें हैं जिनके तहत पैसे की उगाही और आचार संहिता का मजाक बनाना आम बात हो गई है। एक अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर राजनीतिक दलों के कुल बजट का लगभग 40फीसदी मीडिया संबंधी खर्चों के लिए आवंटित होता है। लिहाजा, मीडिया और सियासी दलों दोनों पर ही शिकंजा कसना वक्त की दरकार है। इसके लिये जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 123 में संशोधन करके पेड न्यूज के लिए धन के आदान-प्रदान को चुनावी कदाचार घोषित किया जाना चाहिए। हालाँकि, अनुच्छेद 19 ए मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी को सुनिश्चित करता है। लेकिन, समझना होगा कि यह आजादी एकतरफा नहीं है बल्कि, कुछ शर्तों के तहत यह आजादी दी गई है। जाहिर है, मीडिया को अपनी शक्ति के सही रूप में उपयोग करने का सबक मिलेगा और इससे समाज में आमूलचूल परिवर्तन आ सकेगा। पेड न्यूज के खिलाफ एक अभियान की जरूरत है । इसमें समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को सोचना होगा और इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करना होगा । पेड न्यूज़ के मुहिम में WJAI भी आगे है । WJAI के नेशनल प्रेसिडेंट आनंद कौशल ने कहा कि हमारा संगठन इस विषय पर गंभीर है इसलिए लोकतंत्र के महापर्व पर WJAI पेड न्यूज़ का विरोध करता है, संगठन से जुड़े तमाम सदस्यों की आस्था संविधान और उनकी संस्थाओं पर है. हम स्वच्छ, निष्पक्ष और भयमुक्त चुनाव संपन्न कराने की चुनाव आयोग की कोशिशों में पूरा सहयोग करेंगे और स्वस्थ जनतंत्र के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे.
