
नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सिविल सर्विस (न्यायिक ब्रांच, रिक्रूटमेंट), रूल, 1995 के नियम 5ए निरस्त कर दिया। इसमें व्यवस्था थी कि प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले दस गुना उम्मीदवारों को ही मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए बुलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा और नवीन सिन्हा की पीठ ने फैसले में कहा कि यह नियम स्पष्ट रूप से मनमाना है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले (मजहर सुल्तान) का उल्लंघन करता है। पीठ ने कहा कि फाइनल लिखित परीक्षा के लिए उम्मीदवारों को सीमित करने का यह नियम किसी मकसद को पूरा नहीं करता। कोर्ट ने मजहर फैसले में कहा था कि विज्ञापित रिक्तियों का 10 गुणा (1 अनुपात 10)उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा के लिए बुलाना चाहिए। मगर इस मामले में परीक्षा में प्री परीक्षा में बैठे उम्मीदवारों का 10 गुणा लोगों को मुख्य परीक्षा के लिए बुलाया गया था। यानी प्री परीक्षा में बैठे लगभग 17,000 उम्मीदवारों में से 10 गुणा 1843 उम्मीदवारों को ही 349 विज्ञापित रिक्तियों के लिए मुख्य परीक्षा के लिए बुलाया गया। जबकि मजहर फैसले के अनुसार यह संख्या विज्ञापित रिक्तियों का 10 गुना यानी 3490 होना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार, हाईकोर्ट पटना और बीपीएससी से कहा कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य की परीक्षाओं में कटआफ अंक रखे जाएं। कोर्ट ने यह आदेश बुधवार को कुछ उम्मीदवारों द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई रिट याचिका पर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्री परीक्षा के लिए कोई न्यूनतम अंक नहीं रखे गए हैं। लेकिन आयोजित हो चुकी परीक्षा में अब कटआफ अंक तय करना उचित नहीं होगा। पीठ ने साथ ही यह भी आदेश दिया कि बीपीएसी मुख्य परीक्षा छह हफ्ते के अंदर आयोजित करे। यह परीक्षा रिक्तियों के 1:10 के आधार पर की जाएगी और इसके अनुसार ही उम्मीदवारों को बुला जाएगा।
