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हौसला रखने वाले को मंजिल पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। पश्चिम चंपारण जिला के घोड़ासहन थानांतर्गत बेलवा बाजार निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्व जगदीश चौधरी की कहानी कुछ ऐसी ही है। उन्हें अंग्रेजों की गुलामी पसंद नहीं थी, भला किसे जंजीरों में जकड़ा हुआ देश पसन्द आएगा। देश की आजादी को लक्ष्य बना कर अपने सहयोगियों के साथ जगदीश चौधरी ने अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति बनाना शुरू कर दिया था। कहते हैं कि जब कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो रास्ते खुद ब खुद मिल ही जाते हैं। बेलवा बाजार नील की खेती के लिए मशहूर था जिसपर अंग्रेजों की नजर गड़ी हुई थी। बस फिर क्या था अंग्रेजों के इसी बुरी नजर का विरोध करते हुए स्व चौधरी मुजफ्फरपुर के रास्ते कोलकाता पहुंच गए। कोलकाता में उनकी मुलाकात नेताजी सुभाषचंद्र बोस से हुई और वे आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। इस दौरान वे जेल भी गए। अंग्रेजों के प्रताड़ना की परवाह न करते हुए स्व चौधरी ने कोलकाता के काली घाट को अपना कार्यक्षेत्र चुना। आजाद भारत मे भी स्व चौधरी को आमजनों से लगाव रहा और वे समाज सेवा के भाव से काम करते रहे।
आजादी के बाद स्व चौधरी को प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, इंदिरा गांधी ने पत्र लिख कर पेंशन लेने के लिए कहा लेकिन सब चौधरी ने कहा कि पेंशन लेने के लिए हमारी जमीर इजाजत नहीं देती। जहां लाखों लोगों ने देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दी, उस देश की आजादी के एवज में मैं पेंशन कैसे ले सकता हूं। अपने जीवन यापन के लिए स्व चौधरी कोलकाता में वर्ष 1930 से प्रकाशित अखबार डेली देश दर्पण में रिपोर्टिंग का काम शुरू कर दिया। अखबार के मालिक सरदार मास्टर तारा सिंह नेताजी सुभाषचंद्र के करीबी माने जाते थे। हालांकि उस वक्त स्व चौधरी को वेतन मात्र 25 रुपये ही मिलते थे फिर भी वे इसी में अपने परिवार का गुजर कर लेते थे। अखबार का प्रकाशन वर्ष 1998 में बंद हो गयी लेकिन स्व चौधरी उससे भी पहले ही नौकरी छोड़ कर अपने घर आ गए। हालांकि माली हालत बहुत कमजोर थी फिर भी गरीबी से समझौता न करके संघर्ष करते रहे और 5 नवंबर 1995 को उनकी निधन हो गयी। उन्ही के रास्ते ओर चलते हुए उनके पुत्र जेपी चौधरी भी समाजसेवा का कार्य करते हुए पत्रकारिता में अपनी जगह बनाई और वर्तमान में वे दिल्ली से प्रकाशित पंजाब केशरी बिहार झारखंड संस्करण के ब्यूरो प्रभारी हैं।