
पत्नी से तलाक की खबरें जब घर की चाहरदीवारी लांघ गयी तो तेजप्रताप ने तलाक वजह यह बताया कि वो घुट-घुटकर जी रहे थे। यह बिल्कुल सामान्य बयान है और पति-पत्नी के बीच रिश्तों की खाई इतनी चैड़ी हो जाए जहां बात तलाक तक पहुंच जाए तो जाहिर है कोई तो घुट रहा है इस रिश्ते में। हो सकता है गलती तेजप्रताप यादव की पत्नी की हो या फिर हो सकता है गलती तेजप्रताप यादव की हो या फिर हो सकता है दोनों की हो, यह भी हो सकता है कि गलती किसी की हो हीं नहीं। तेजप्रताप यादव का स्वभाव मनमौजी किस्म का है। अध्यात्म के प्रति उनकी रूचि रही है। पत्नी ऐश्वर्या बेहद मार्डन सोसायटी में रही है, आधुनिक महिला हैं जबकि तेजप्रताप पारंपरिक सोंच और स्वभाव वाले व्यक्ति। लालू यादव के घर का माहौल भी ऐसा हीं है। कभी बिहार की मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी आज भी जब कभी यदा-कदा टेलीविजन चैनलों पर दिखायी देती हैं तो बेहद सामान्य महिला हीं नजर आती है। लालू के घर की छठ, उनके घर की होली और ठेठ भाषायी अंदाज से दुनिया वाकिफ है। जाहिर है मामला सामंजस्य का भी हो सकता है।

हो सकता है कि बात उतनी बड़ी हो हीं न जितनी बड़ी दिखायी दे रही है। तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच का अंतर साफ है। तेजस्वी सियासत के नफा-नुकसान और मौकों की नजाकत की समझ रखते हैं जबकि तेजप्रताप का अतीत उनकी अपरिवक्वता को दर्शाता है। तेजप्रताप यादव जरा सा भी परिवक्वता का परिचय देते तो यह खबरें बाहर न आती। इसके पूर्व में अपने बयानों और अपने ट्वीट से वो पार्टी और परिवार में हलचल पैदा कर चुके हैं। हो सकता है कि यह कयास सही हो कि पार्टी और परिवार में कथित रूप से उनकी उपेक्षा उन्हें बेचैन कर देती हो। नई नवेली शादी में सामंजस्य की समस्या, विरासत में मिला सियासत का छोटा हिस्सा या फिर कथित उपेक्षा ने उन्हें घुटने को मजबूर किया हो लेकिन घुट-घुटकर जीते तेजप्रताप यादव की घुटन और उनकी अपरिवपक्वता को भुनाने में हमारे पेशे यानि पत्रकारिता की मर्यादा कितनी घुटती नजर आयी यह भी देखना होगा। परिवार और उसकी पृष्ठभूमि चाहे जो भी हो लेकिन पति-पत्नी के बीच का मामला हमेशा निजी होता है। यह निजता जब अपने दायरे को लांघती है तो बात परिवार तक पहुंचती है। क्या हमने इस निजता का अतिक्रमण करने की कोशिश नहीं की है?
क्या हमने एक निजी रिश्ते के बीच की कड़वाहट, परिवार के अंदरखाने की कलह को भुनाने की कोशिश नहीं की है? सिर्फ इसलिए कि मामला बिहार के दो बड़े राजनीतिक परिवारों के बीच का है। चैनलों पर डिबेट हो रहे थे। पैकेज और प्रोग्राम सबमें तेजप्रताप है। एक पति ने अपनी अर्जी में अपनी पत्नी पर जो आरोप लगाये हैं उसे जायकेदार खबर बनाकर परोसा जा रहा है। यह सही है कि एक बड़ा दर्शक वर्ग है, पाठक वर्ग है जिसका हाजमा कुछ ऐसा है कि उसे खबरों में मसाला पसंद है तो क्या यह सही है कि किसी के बेहद निजी मसले को उसी हाजमे की खुराक बना दिया जाय। क्या हमें घुटन नहीं होनी चाहिए कि अपने पेशे के उस दौर में हैं हम जहां हम इतने मजबूर हैं कि हमें रिश्तों की खटास की खट्मिट्ठी बनाकर परोसनी पड़े? अगर मजबूरी इस हद तक है तो फिर घुटन अब तेजप्रताप और ऐश्वर्या और के बीच के रिश्तों से ज्यादा हमारे इस पेशे में ज्यादा है।