बिहार ब्रेकिंगः राजनीति में नारों की भी एक अहम भूमिका होती है। राजनीति हीं क्यो जनांदोलनों में भी नारों की अपनी एक भूमिका रही है। लेकिन सियासत में नारों के इस्तेमाल का चलन ज्यादा रहा है। नेताओं और पार्टियों के लिए नारे किसी हथियार की तरह होते हैं और खासकर चुनावी मौसम में तो नारों की तो बात हीं पूछिए मत। लेकिन कहते हैं वक्त बदलता है तो चीजें बदल जाती है। बदले वक्त के साथ हर चीज पुरानी हो जाती है यूं कहें कि आउटडेटेड हो जाती है। उसी तरह राजनीति को धार देने वाले और जनता को लुभाने वाले नारे भी आउटडेटेड हो जाते हैं। किसी एक्सपायरी दवाओं के इस्तेमाल से जो खतरा हो सकता है राजनीति में आउटडेटेड नारों के इस्तेमाल से भी वही खतरा हो सकता है बात बनने की बजाय बिगड़ सकती है। थोड़ा फ्लैशबैक में चलिए और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उन नारों को याद किजिए।
‘अच्छे दिन वाले हैं’
बीजेपी का यह नारा भी कमोबेश आउटडेटेड हीं है क्योंकि बीजेपी ने इस लाइन को नारा बनाकर इस्तेमाल किया था। बीजेपी का यह स्लोगन आज सवाल है। सवाल यह कि क्या आ गये अच्छे दिन? दरअसल राजनीति में धारणाओं का बड़ा महत्व होता है और बीजेपी को लेकर अब यह आम धारणा है कि वायदों पर बीजेपी खरी नहीं उतरी। इसलिए अच्छे दिन वाला नारा जाहिर है नहीं चलेगा।
बहुत हुई मंहगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’
बीजेपी का यह नारा तो बिल्कुल हीं आउटडेटेड है क्योंकि मंहगाई आसमान छू रही है, रूपया गिर रहा है और दावे दवा नहीं बन रहे बल्कि खोखला साबित हो रहे हैं। पेट्रोल-और डीजल की रोज बढ़ती कीमतों से आम आदमी हलकान है। इसलिए जाहिर है बीजेपी का काम अब इन नारों से नहीं चलेगा क्योंकि नारे आउटडेटेड हो गये हैं।
