
अभिषेक मिश्रा-संमाचार संपादक

बिहार डेस्कः शिक्षा में बदहाली बिहार की तकदीर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में इस सूबे का पिछड़ेपन बिहार की बड़ी विडम्बना रही है लेकिन बदलते बिहार में यह स्थिति भी बदलती दिखायी देती है। लेकिन तकदीर और तस्वीर संवारने के लिए जो प्रयास किये गये हैं वो शायद नाकाफी रहे हैं। हांलाकि इसका सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि मौजूदा राज्य सरकार के अंदर यह छटपटाहट हमेशा रही है कि किसी भी हाल में बिहार को इस बदहाली के दौर से उबारना है। शिक्षा की स्थिति को बेहतर करना है। मौजूदा राज्य सरकार के प्रयास इस बात की तसदीक करते हैं कि सरकार गंभीर है बिहार में शैक्षणिक बदलाव के लिए। मिड डे मिल, पोषाक योजना, साइकिल योजना और स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना उन प्रयासों के नाम है जो मौजूदा राज्य सरकार ने अब तक इस दिशा में किये हैं। यह भी विडम्बना हीं है कि तमाम प्रयासों के बावजूद बदलाव उतना व्यापक नहीं हुआ है जिसकी उम्मीद की जाती है या जिसकी जरूरत है। भारत का एक और राज्य है दिल्ली। देश की राजधानी भी है दिल्ली। दिल्ली महज देश की सत्ता का केन्द्र नहीं है बल्कि दिल्ली आज उस भरोसे का केन्द्र बन गया है कि अगर इरादा हो तो चमत्कार किये जा सकते हैं। शिक्षा में जो क्रांतिकारी परिवर्तन दिल्ली ने किया है उसने बिहार के अंदर यह हसरत जिंदा कर दी है कि हमें शिक्षा वाला दिल्ली बनना है। मानों बिहार यह मनुहार कर रहा हो कि ‘सीएम साहब बिहार को शिक्षा का ‘दिल्ली’ बना दिजिए और जीत लिजिए बिहार का दिल। दिल्ली ने बिहार सहित देश के उन तमाम राज्यों को राह दिखायी जो शैक्षणिक पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रूप में बिहार को ऐसा निजाम मिला है जो सिर्फ एक सियासतदान नहीं बल्कि एक जिद्दी समाज सुधारक भी हैं। सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की जिद किस हद तक उनके अंदर है यह पूरी दुनिया ने शराबबंदी और दहेजबंदी जैसे फैसलों में देखा है। इसलिए बिहार अब यह उम्मीद भी है कि शिक्षा के क्षेत्र में बिहार में दिल्ली की तर्ज पर क्रांतिकारी परिर्वतन होंगे। यह जानना भी जरूरी है कि आखिर दिल्ली सरकार ने ऐसा क्या किया जिससे कम वक्त में इतना व्यापक बदलाव आ गया शिक्षा के क्षेत्र में। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों में बदहाली दूर करने के कई प्रयास किया साथ-साथ निजी स्कूलों की मनमानी पर भी लगाम लगायी। कई सरकारी स्कूलों के विकास के लिए विशेष धन आवंटित किये। सरकारी स्कूलों में ‘दिल की बात’ कार्यक्रम शुरू किया जिसमें व्यक्तिगत और शैक्षणिक मुद्दों पर परामर्श के लिए छात्रों को शामिल किया गया। हिन्दी माध्यम के छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं शुरू की। कुल मिलाकर दिल्ली सरकार की दृढ़संकल्पिता से यह बदलाव दिल्ली में आया जिसकी उम्मीद आज बिहार भी कर रहा है।
हांलाकि बिहार में भी अब शैक्षणिक क्रांति का माहौल बनने लगा है। बिहार ने संकेत दे दिया है कि अब किसी भी हाल में पढ़ेगा बिहार और बढ़ेगा बिहार। शिक्षक दिवस के दिन बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने स्पष्ट किया कि बिहार में भी निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगेगी। बहरहाल दिल्ली के व्यापक बदलाव को देखकर बिहार अब सरकार की ओर हसरत भरी निगाहों से देख रहा है।
एक उम्मीद जगी है कि अब बिहार बदलेगा। सरकार सीरियस हुई तो मनमानी करने वाले प्राईवेट स्कूलों की शामत आ सकती है। और ऐसी हर कार्रवाई आवाम को यह भरोसा दे जाती है कि सरकार तकदीर और तस्वीर दोनो संवारना चाहती है।