
वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह की कलम से
बिहार ब्रेकिंग

पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों में वैक्सीन के प्रति शंका है कि इससे व्यक्ति नपुंसक हो जाता है या फिर इसमें कोई एक चिप है जो शरीर में डाल दी जाती है। उत्तर भारत के गाँवों में एक वर्ग इसलिए टीके के प्रति उदासीन है कि इससे मौत हो जाती है। बिहार के एक जिले में जब एसपी और डीएम एक गाँव के मुखिया से पूछा कि लोग टीका क्यों नहीं लगवा रहे हैं तो जवाब था “टीका केंद्र में जाने के बाद आदमी सीधे शमशान पहुँच रहा है”। जब अधिकारियों ने आगे जानना चाहा कि कौन व्यक्ति टीका लगवाने के बाद मर गया है तो उसने बताया “इस गाँव में तो नहीं लेकिन बगल वाले गाँव में दो व्यक्ति मर गए”। अफसरों ने उससे कहा कि चल के बताओ कौन सा गाँव या कौन सा व्यक्ति है तो पता चला कि उसने दूसरों से सुना है। ये अफसर जहाँ-जहाँ गए “बगल वाले गाँव में मौत” की बात बताई गयी।
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पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश में एक अधिकारी ने इन अफवाहों से बचने के लिए सभी 45 साल के ऊपर के लोगों के लिए 20 किलो अनाज देना शुरू किया। अफवाह का असर फ़ौरन ख़त्म, और लोग बड़ी तादात में टीका केन्द्रों पर पहुंचे। उस अधिकारी ने अनाज का इंतजाम समाजसेवी संस्थाओं के जरिये करवाया। अजीब देश है जहां आज भी एक बड़ा तबका अफवाहों पर अपने और अपने परिवार की जिन्दगी खतरे में झोंक देता है।
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कुछ साल पहले बिहार के सारण जिले में एक गाँव में जब पोलियो का टीका लगवाने स्वास्थ्य कर्मी पहुंचे तो उन्हें मारपीट कर भगा दिया गया। ग्रामीणों की जिद थी कि जब तक सड़क पक्की नहीं होगी बच्चों को टीका नहीं लगवायेंगें। यह जिला उस समय तक भारत में पोलियो का सबसे बड़ा शिकार था और उस बस्ती में हर चौथा बच्चा पोलियोग्रस्त। ग्रामीणों का तर्क था “पैर लेकर क्या करेगा अगर चलने के लिए रोड हीं नहीं है”। सरकार से बच्चों को लकवा पीड़ित बनाने की हद तक सौदेबाजी का ऐसा उदाहरण दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। कोरोना से मुक्ति चाहिए तो टीकाकरण को मिशन बनाना होगा।