नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। पूरा देश आज सुभाष चंद्र बोस को याद कर रहा है। अलग-अलग जगहों पर जयंती कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं। बख्तियारपुर के सिढ़ी घाट स्थित पं0 शील भद्र याजी मेमोरियल में भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती आयोजित की गयी।

इस पुनीत अवसर पर उनके द्वारा आजादी की लड़ाई में दिये योगदान को याद करते हुए अच्युतानंद याजी, जर्नादन शर्मा, रामानंद सिंह, शैलेन्द्र कुमार, दयानंद शर्मा, श्यामकिशोर प्रसाद, श्यामानंद याजी समेत सैंकड़ों लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित की।
आपको बता दें कि पटना जिले के बख्तियारपुर में जन्मे शीलभद्र याजी ने संघर्ष और विचारधारा के स्तर पर शुरू से आखिर तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का साथ निभाया। इसी समपर्ण के चलते अंग्रेजों ने नेताजी के बाद उन्हें नंबर दो का युद्ध अपराधी घोषित कर रखा था। नेताजी पर 50 हजार रूपये का इनाम था और शीलभद्र याजी पर 25 हजार रूपये का। 1939 में जब फाॅरवर्ड ब्लाॅक की स्थापना हुई तो नेताजी ने उन्हें बिहार के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी। बाद में नेताजी ने जब देश छोड़ दिया तो याजी उनके उत्तराधिकारी के रूप में फारवर्ड ब्लाॅक के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये।
शीलभद्र याजी के पुत्र सत्यानंद याजी के पास नेताजी से जुड़ी पूरी दास्तान है, जो वक्त-बेवक्त अपने पिता से सुना करते थे। यह भी कि 1939-40 में नेताजी ने अंग्रेसी शासन के खिलाफ जन जागृति के लिए अभियान छेड़ा तो शीलभद्र याजी के बुलावे पर वह बिहार के दौरे पर आए। तब याजी ने नेताजी के लिए पूरे बिहार में 438 सभाओं का आयोजन कराया था। रामगढ़ (अब झारखंड) का कांग्रेस अधिवेशन भी याजी ने हीं आयोजित कराया था, जिसमें महात्मा गांधी से नेताजी के मतभेद खुलकर सामने आए थे। नेताजी के करीबी होने का खामियाजा शीलभद्र याजी को बार-बार भुगतना पड़ा। इसी का नतीजा था कि ब्रिटिश पुलिस ने 1946 में उन्हें दो-दो बार कोर्ट मार्शल किया गया। इसी साल नौसेने विद्रोह के लिए उकसाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किये गया। आठ महीने जेल में रहे और आजादी के बाद हीं रिहा हो पाये थे।


