
बिहार ब्रेकिंग-रविशंकर शर्मा

खुद को खुदा समझने की भूल कर बैठे प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को आज जदयू ने प्राथमिक सदस्यता समेत सभी दायित्वों से तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया। जैसा कि आप को मालूम होगा प्रशांत किशोर रणनीतिकार रहे और पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू राजद गठबंधन को निर्णायक जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। बिहार में बाहर हो, नीतीशे कुमार हो उन्ही का स्लोगन था जो चुनाव के दौरान काफी सफल रहा था। फलस्वरूप पार्टी नेतृत्व ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर पीके को सम्मानित किया। वे पार्टी में उच्च पदाधिकारी बन गये इसके बाबजूद विभिन्न दलों को विभिन्न प्रदेशों में अपनी सेवा देते रहे। मसलन उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिये भी काम करने की सहमति दे दी। उनकी यही सहमति के कारण पार्टी में असहमति उतपन्न हुई। हालाँकि पार्टी ने उन्हें फिर भी बर्दाश्त किया और उनके दूसरे दलों के प्रमुखों के साथ सम्बन्धों को निजी बताकर टाल दिया। इसके बाबजूद पीके नही सम्हले। जैसा कि आप सब जानते हैं प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के लिये भी रणनीति बनाई थी और सफल रहे।
हाल में सीएए का पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में समर्थन किया तो पी के सभी विपक्षी दलों से आह्वान इसका विरोध करने का आह्वान करने लगे। ये भी पार्टी के लिये नागवार गुजरा। इसके संकेत कल ही मुख्यमंत्री ने दे दिये थे जब उन्होंने कहा कि पीके को अमित शाह के कहने पर पार्टी में लिया था वे जहाँ जाना चाहें जा सकते हैं। इस पर प्रशांत किशोर ने पलटवार करते हुये कहा था कि पटना लौटकर सीएम को माकूल जबाब देंगे। यानी पीके को लेकर पार्टी उनके उपाध्यक्ष बनने के साथ ही असहज हो गई थी और जदयु के एक बड़े धरे में उनके खिलाफ मंद मंद आक्रोश सुलग रहा था। ईधर पवन वर्मा ने निजी पत्रों को सार्वजनिक कर पार्टी लाइन से हटकर और विरुद्ध गतिविधि में शामिल रहने का सुबूत दे दिया जी पार्टी को अस्वीकार था और इसलिये पार्टी ने आज दोनो को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दोनों के पार्टी और नेतृत्व विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने का समुचित उल्लेख करते हुये जदयू से बर्खास्त कर दिये जाने की जानकारी दी। हालाँकि इन दोनों के जदयू से निष्कासन का कोई व्यापक असर पड़ने वाला भी नही है। देखा जाय तो दोनों ही पार्टी नेतृत्व के रहमोकरम पर थे और दोनों पार्टी में ऐसे नेता थे जिनके पास जनाधार नही था। अतः पार्टी ने ऐसे नेताओं को बाहर निकालकर यह भी दिखा दिया कि अनुशासनहीनता किसी सूरत में बर्दाश्त नही की जा सकती खासकर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ। हाँलाकि राजनीति में संभावनाएं बनती बिगड़ती रहती है फिर भी इस घटनाक्रम ने एक बात फिर से साबित कर दिया है कि जदयू का मतलब नीतीश कुमार है और नीतीश कुमार से जदयू। और निकट भविष्य में इसका कोई विकल्प नही नजर आ रहा है।