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पिछले दिनों राजेंद्रसेतु के मालवाहक वाहनों के लिये बन्द किये जाने के बाद से लगातार इससे प्रभावित मध्य और उत्तर बिहार के आठ जिलों के लाखों लोग बेरोजगारी की प्रत्यक्ष और परोक्ष समस्या से जूझ रहे हैं। और इसके विकल्प की तलाश के लिये रेलवे, NHAI के साथ ही बिहार सरकार के विभिन्न मंत्री, सांसद, विधायक और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। इसी क्रम में रेलवे और वाहन मालिकों के बीच एक बैठक में यह प्रस्ताव दिया गया कि रो-रो सेवा के जरिये भारी वाहनों का परिचालन कराया जा सकता है जिसके लिये रेलवे विचार कर सकती है, इसके बाद वाहन मालिक संघ संतुष्ट हो गया और यह खबर मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगा कि अब रेलवे के रो-रो सेवा से बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो जायेगा।
परंतु ग्राउंड जीरो से हमारी टीम ने जब इसकी जाँच की तो ये सेवा कहीं से भी धरातल पर टिक नही सका। दरअसल मालगाड़ी पर जब ट्रक को लादकर ले जाने की कोशिश की जायेगी तो वो हाई वोल्टेज लाइव वायर को या तो स्पर्श कर जायेगा या एक से दो फीट तक ही दूर रहेगा जिससे बड़े हादसे हो सकते हैं। अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार के भारी वाहनों की बनावट अलग और अधिक बड़ी होती है और यही रो रो सेवा के राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। ऐसा लगता है मानो रेलवे ने बिना किसी भौतिक सत्यापन के ही रो रो सेवा पर विचार करना शुरू कर दिया है। रेलवे की प्रस्तावित रो रो सेवा की पड़ताल हमारे विशेष संवाददाता रवि शंकर शर्मा के साथ जिन्होंने हाई वोल्टेज के नीचे जान जोखिम में डालकर अपने टीम के साथ इसकी सच्चाई उजागर की।