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जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के उन सभी प्रावधानों को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात कही गई थी। अब से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश माने जाएंगे बस फर्क इतना होगा कि जम्मू-कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी और लद्दाख कि नहीं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 370 को खत्म करने वाला बिल लोकसभा की जगह राज्य सभा में पेश किया। हालांकि, राज्य सभा के लिए कहा जाता है कि सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है, लेकिन फिर भी इस बिल को पहले राज्य सभा में पेश किया गया। अमित शाह ने जैसे ही बिल को पेश किया सदन में जमकर हंगामा शुरू हुआ। विपक्षी दलों ने भारत बचाओ देश बचाओ के नारे लगाए। महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के सांसदों ने सदन में संविधान की प्रति फाड़कर उछाली तो चेयरमैन ने मार्शल का इस्तेमाल कर उन दोनों सांसदों को सदन से बाहर कर दिया। वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सरकार के इस कदम को कश्मीर के लोगों के साथ धोखा बताया और साथ ही कहा कि यह संसदीय इतिहास का एक काला दिन है। कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी, आरजेडी, डीएमके, मुस्लिम लीग और तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई सीपीएम समेत कुछ विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया। वहीं सरकार के इस बिल के समर्थन में ऐसे दल भी आ गए जो अभी तक विपक्ष का हिस्सा थे मसलन बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी। सरकार के सहयोगी दलों में एआईएडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल, अकाली दल, लोक जनशक्ति पार्टी समेत अन्य सहयोगी दल एक सुर में सरकार के फैसले के साथ में खड़े नजर आए। शिवसेना ने तो इसको एक ऐतिहासिक फैसला करार देते हुए कहा कि सही मायने में पहली बार कश्मीर का भारत में विलय हुआ है।
किसने क्या दी प्रतिक्रिया
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस धारा 370 हटाने का विरोध किया एवं कहा कि बिना किसी कानूनी प्रावधान के संविधान को दुबारा लिखा गया है। ऐसे निर्णय इस तरह से मनमानी के साथ नहीं करनी चाहिए। तो सपा नेता रामगोपाल यादव ने राज्यसभा में कहा, “यदि आप अनुच्छेद 370 को हटाना चाहते हैं तो आपको केवल यही करना चाहिए था, आपने राज्य की स्थिति क्यों बदली और इसे केंद्र शासित प्रदेश क्यों बनाया? आपको कम से कम राज्य के लोगों को विश्वास में लेना चाहिए था? एनसीपी नेता शरद पवार ने केंद्र के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मुझे लगता है कि केंद्र सरकार को (घाटी के नेताओं) को विश्वास में लेना चाहिए था लेकिन दुर्भाग्य से सरकार ने ऐसा नहीं किया और तभी सरकार को यह निर्णय लेना चाहिए।” आरजेडी के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के मुताबिक, जम्मू कश्मीर एक संवेदनशील राज्य है। इसे संविधान के जरिए कुछ रियायत हासिल है लिहाजा इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री को राजधर्म निभाने की सलाह भी दी और कहा कि कश्मीर के लोगों को ऐसा नहीं लगे कि उसके साथ नाइंसाफी हो रहा है। उन्हें ऐसा नहीं लगे कि उनके पूर्वजों ने कश्मीर में रहने का फैसला गलत थाम फौज और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती की गई। शिवानंद तिवारी के मुताबिक, अमरनाथ यात्रा भी रद्द कर दी गई है। ऐसा लगता है कि वहां तनाव के हालात हैं, लिहाजा केन्द्र को सोच समझकर फैसले करने चाहिए। वहीं भाजपा नेता और बिहार विधानपरिषद के सदस्य नवल किशोर यादव के मुताबिक, केन्द्र में अब कठपुतली नहीं बल्कि सशक्त और मजबूत इरादों वाली नरेन्द्र मोदी सरकार है, जो न केवल कहती है बल्कि निर्णय भी लेती है। नवल किशोर यादव ने कहा कि, किसी को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। एक संवेदनशील और सशक्त सरकार दिल्ली में काम कर रही है। दूसरी ओर जनता दल यूनाइटेड ने फिर अपनी बात दोहरायी है। पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन के मुताबिक, धारा 370 पर जो हमारी नीति थी वो आज भी कायम है यानि हम इससे छेड़छाड़ के खिलाफ हैं। बाकी कैबिनेट के फैसले के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।