
बिहार ब्रेकिंग

मशहूर शायर निदा फाजली की एक शायरी है ‘घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए’। यह शायरी बिल्कुल बेगाना सा लगता है मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में, जहां प्रतिदिन कम से कम दस बच्चों की मौत हो रही है, परिजन बेहाल हैं, हर तरफ सिर्फ करुण क्रंदन है। वहां भर्ती होने वाले हर बच्चे के परिजनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है, वे हर पल किसी अनहोनी की आशंका तले दबे जा रहे हैं। बीमारी की भयावहता और प्रतिदिन हो रही मौतों को देखने के बाद रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे और बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय हालात का जायजा लेने अस्पताल पहुंचे थे। अस्पताल प्रबंधन से हालात का जायजा लेने और आवश्यक निर्देश देने के बाद तीनो मंत्रियों ने एक प्रेस कांफ्रेंस किया जिसमें उन्होंने अपने हिसाब से पत्रकारों के सवालों का जवाब भी दिया। इसी बीच प्रेस कांफ्रेंस का एक फोटो अचानक सोशल मिडिया पर वायरल होने लगा जिसमें अश्विनी कुमार चौबे की ऑंखें बंद हैं, और फोटो के साथ लिखा है कि भयंकर बीमारी की वजह से सैकड़ों बच्चों की जानें जा रही है और केंद्रीय मंत्री प्रेस कांफ्रेंस में भी सो रहे हैं। वायरल हो रहे इस फोटो पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री के समर्थकों ने प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस और राजद के नेताओं पर आरोप लगाते हुए कहा है कि इस फोटो के साथ छेड़छाड़ की गई है। हालांकि बिहार ब्रेकिंग इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि प्रेस कांफ्रेंस के दौरान केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे झपकी ले रहे थे या फोटो के साथ छेड़छाड़ की गई है लेकिन उनके समर्थकों ने फोटो के साथ छेड़छाड़ का आरोप कांग्रेस और राजद के नेताओं पर लगाया है। चौबे के समर्थकों के अनुसार चौबे ने ही वर्ष 2014 में प्रयास किया और उसका नतीजा रहा था कि 2014 से 2018 तक इस बीमारी का प्रकोप नगण्य रहा था। एक बार फिर से इस बीमारी ने 2019 में भारी संख्या में बच्चों को अपने चपेट में लिया है और कई बच्चों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। चौबे के समर्थकों ने कहा कि जिस प्रकार फोटो के साथ छेड़छाड़ कर किसी एक व्यक्ति की छवि को धूमिल की जा रही है बेहतर होता कि लोग इस बीमारी के लक्षण और बचाव के तरीके पोस्ट कर अगर जागरूकता फ़ैलाने का काम करते तो शायद कुछ लोग जागरूक होते और संभव था कि कुछ बच्चों की जान बच सकती थी। इन आरोप प्रत्यारोप के बीच इस भयंकर बीमारी की आक्रामकता और बच्चों की जान की गंभीरता खत्म कर केवल राजनीति की जा रही है।

साथ ही अभी तक की स्थिति को देख कर तो यह साफ है कि एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री पीएमसीएच को विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने की बात कर रहे हैं वहीँ मृतक बच्चे के परिजनों के अनुसार मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पतालों में दवाएं, चिकित्सकों और उचित सुविधाओं का घोर अभाव है। इतना ही नहीं बिहार में इतने लंबे समय से बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ कर अपनी जानें गंवा रहे हैं लेकिन अब तक सरकार इस बीमारी के कारणों का भी पता नहीं लगा सकी है। और इसका परिणाम है कि अब तक अस्सी से अधिक बच्चों की मौत सिर्फ सरकारी अस्पतालों में हो चुकी हैं वहीँ निजी अस्पतालों में हुई मौत का अभी तक कोई ब्यौरा नहीं है। मुजफ्फरपुर में एइएस की वजह से हुई मौत पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चार लाख रूपये मुआवजे की मरहम लगाने की कोशिश तो जरुर की लेकिन सवाल है कि क्या इन मासूम जान की कीमत यही चार लाख रूपये लगा कर राज्य या केंद्र सरकार अपने जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई या इस भयंकर बीमारी के कारणों और इसके निदान भी खोजे जाएँगे।