
बिहार ब्रेकिंगः जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि कल देर रात सीबीआई निदेशक को जबरन छुट्टी पर भेजने तथा संयुक्त निदेशक को अंतरिम व्यवस्था के तौर पर निदेशक का प्रभार देने के सरकार के फैसले की मैं निंदा करता हूं। देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है। सीबीआई निदेशक का चुनाव चयन समिति द्वारा किया जाता है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर विधिवत निर्धारित नियमों में प्रदान किया गया है और नियमों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि चयन समिति द्वारा ही निलंबन और निष्कासन भी किया जाएगा।श्री यादव ने कहा कि सरकार द्वारा देर रात जो कुछ भी किया गया है वह संवैधानिक, नैतिक और राजनीतिक रूप से गलत तथा अवैध है। यह स्वतंत्र इकाई में हस्तक्षेप करने का बल प्रयोग मात्र है। शुरुआत में ही जब श्री अस्थाना को विशेष निदेशक नियुक्त किया जा रहा था तब सीबीआई निदेशक श्री आलोक वर्मा ने इसका विरोध किया था और सरकार को इससे बचना चाहिए था लेकिन इसकी बजाय इन्हें नियुक्त किया गया क्योंकि वह बीजेपी अध्यक्ष तथा भारत के प्रधान मंत्री के करीबी माने जाते थे। यह केवल सरकार और बीजेपी थी जिसने देश के प्रमुख जांच इकाई में लड़ाई को बढ़ावा दिया जिसकी अपनी साख थी। न केवल सीबीआई की साख बल्कि देश में कई ऐसे अन्य संगठन हैं जिनमें स्वायत्त निकायों और संवैधानिक निकायों को पिछले चार वर्षों में नष्ट कर दिया गया है। यह पहली बार हुआ है कि सीबीआई सीबीआई के खिलाफ जांच कर रही है और अपने परिसर में ही छापे मार रही है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि संगठन की साख जानबूझकर इस सरकार द्वारा गिराई गयी है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नियमों को ताक पर रखना कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता जैसा कि पहले विशेष निदेशक नियुक्त किये गए और अब सीबीआई के निदेशक को जबरन छुट्टी पर भेजा गया है और जिस तरह से अन्य अधिकारियों को जो कि विशेष निदेशक के खिलाफ आरोपों की जांच करने के लिए नियुक्त किये गए थे उन्हें आनन फानन में स्थानांतरित कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि जब सीबीआई निदेशक ने सरकार से राफेल जेट फाइटर की खरीद से संबंधित फाइलें मांगी तब से सरकार में उच्चतम पदों पर बैठे लोगों और बीजेपी को सीबीआई निदेशक श्री आलोक वर्मा खटकने लगे। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे के खिलाफ जो आरोप लगायें हैं वह कितना सही है और कितना गलत मैं इसपर नहीं जाना चाहता लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इससे सरकार का इरादा जरुर जगजाहिर हुआ है क्योंकि ऐसा करना सिर्फ अनुचित ही नहीं बल्कि बेहद संदिग्ध है। यह स्वतंत्र इकाई के मामलों में सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है जब प्रधान मंत्री ने सीबीआई निदेशक को उस वक्त बुलाया जब सीबीआई इस विशेष निदेशक अस्थाना के खिलाफ आरोपों की जांच कर रही थी जो कि उनके चहेते अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा यह आश्चर्य की बात है कि सर्वोच्च राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों के कामकाज की वजह से जबकि इस सरकार की जनता में लगातार आलोचना हो रही है उसके बावजूद भी वह खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं जो देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और क्षतिजनक है।
