
अभिषेक मिश्रा- समाचार संपादक
घर में बेटा जवान और दिलो-दिमाग में यह मुगालता है कि मेले की भीड़ आपके बच्चे को आपसे नहीं छिन सकती क्योंकि आपका बेटा तो बड़ा है वो गुम नहीं हो सकता तो फिर इस मुगालते पर मुबारकबाद आपको। मैंने देखा है मेले की भीड़ में खोए कई जवान चेहरों को। मैंने देखा है आपके उन बच्चों को जो आपसे बिछड़ गये हैं। आपका बेटा बेटा नहीं रहा। दशहरे का जो मेला बचपन में उसने आपकी अंगुलिया पकड़कर देखा है, खिलौना खरीद कर खुश हुआ है और उसे खुश देखकर आप खुश हुए हैं। याद रखिए खुशियां अतीत है आपके लिए क्योंकि आपका बेटा महिलाओं को लड़कियों खिलौना समझ बैठा है। मैंने देखी है आपके बेटों के अंदर उन खिलौनौं से खेलने की जिद जो दरअसल खिलौना है ही नहीं। सोचिए आपका हीं खून हमारे आपके घरों की इज्जत से खेलने लगा है। कभी वक्त निकालिए और महससूस किजिए इस खिलवाड़ को। महसूस किजिए अपने बेटे के अंदर पलती उस हवस को जो रोज आपको बेटे को आपसे दूर ले जा रही है।

खो रहा है आपका बेटा। सोहबत संस्कारों पर भारी पड़ रही है और कीमत चुका रही हैं सड़कों पर निकलने वाली वो महिलाएं-लड़कियां जिनके लिए अब मेला-मेला नहीं झमेला है। झमेला है जिल्लत का, झमेला है आपके घरों में पलते ऐसे आवारो शोहदों की फब्तियों, दो अर्थी कमेंटस को झेलने का। बेटे की उम्र अगर 10 साल से ज्यादा है और वो बजाने वाला भोंपू लेकर लौटे तो समझिए आपके घर अपराधी लौटा है। खेलने के लिए नहीं खरीदा उसने भोंपू खिलवाड़ का हथियार बनाया है उसने भोंपू को। हथियार महिलाओं और लड़कियों को छेड़ने का। मेले की भीड़ में कितना खो जाता है आपका बेटा मैंने देखा है। सुरक्षा में लगे पुलिस वालों का डर नहीं है उसे, आपकी डांट फटकार का डर नहीं है उसे, वो जो कर रहा है उसके हश्र का डर नहीं है उसे आप डरिए क्योंकि यकीन मानिए खो गया है आपका बेटा, आपके घर तो बस अपराधी लौट रहा है। आप तो डरिए क्योंकि खो रहा है आपका बेटा। क्या यकीन कर लें कि बेटियों से सलूक का यह सलीका उसने आपसे सीखा है, क्या यकीन कर लें कि चेहरों पर झूठी मुस्कान लेकर मेले में चलने वाली बहन-बेटियां जो अंदर हीं अंदर सड़कों पर सिसकती हैं यह सोंचकर की उसका कसूर क्या है? जो जीती हैं इस डर में कि कहीं शोहदों की सनक का शिकार न होना पड़े उसे।
क्या मान लें हम कि यह उनकी तकदीर है। क्या सड़क पर चलते ऐसे हर शोहदों को अनाथ मान लें क्योंकि वाकई उसके घर में मां बहन नहीं है। क्या यह मान लें उसने कभी किसी महिला को मां, बहन या बेटी की निगाह से देखा हीं नहीं जब भी देखा है उसी नजर से देखा है जिस नजर से मैंने उसे देखते हुए देखा है। और लिख सकता हूं कि लेकिन मेरे पास वक्त नहीं है ठीक उसी तरह जिस तरह आपके पास नहीं है अपने बेटे को संभालने का। उसे खो जाने से बचाने का। सलाह याद रखिएगा खो गया है आपका बेटा ढूंढिए उसे हो सके तो वो जिस चीज से खेल रहा है उसे देखिए, जांचिए परखिए क्योंकि हो सकता है वो खेल नहीं खिलवाड़ हो जिसके हश्र के बाद आप भी सिसकने के लिए लाचार हों क्योंकि आपने नहीं संभाला तो सचमुच खो जाएगा आपका बेटा। आपने नहीं संभाला तो बर्बाद हो जाएगा, इलाहाबाद हो जाएगा।