
-अनुभव

कहा जाता है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना अति आवश्यक है। बगैर मजबूत विपक्ष के सत्ता निरंकुश हो जाती है। मगर अफसोस की केंद्र और बिहार दोनों ही जगह विपक्ष की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले कुछ महीनों से प्रदेश में अपराधिक घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि नजर आ रही है। चोरी, डकैती, लूट, अपहरण, हत्या, आसरा होम की घटना, पुलिस पर हो रहे हमले प्रदेश सरकार की प्रशासनिक क्षमता पर उंगली उठाने के लिए काफी है। राज्य सरकार के अधीनस्थ विभिन्न विभागों में हो रही अनियमितता, प्रश्न पत्र लीक मामला, इंटर की परीक्षा में धांधली, टॉपर घोटाला, सात निश्चय योजना में हो रही गड़बड़ी, आवास योजना में धांधली, रोजगार का अभाव, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, किसानों की हो रही अनदेखी। सहित कई ऐसे मामले हैं जिन्हें उठा पाने में विपक्ष नाकाम दिख रहा है। निश्चित रूप से ऐसे समय में यदि लालू प्रसाद यादव होते तो सरकार की किरकिरी हो रही होती।
कहने को तो विपक्ष में राजद एवं कांग्रेस में एक से एक बड़े नेता मौजूद हैं, लेकिन कोई भी लालू जी की कमी को पूरा नहीं कर पा रहा है। तेजस्वी, तेज प्रताप, रामचंद्र पूर्वे, आलोक मेहता, अब्दुल बारी सिद्दीकी, हम के जीतन राम मांझी, जाप के पप्पू यादव,कांग्रेस के मदन मोहन झा, श्याम सुंदर सिंह धीरज, अखिलेश सिंह, कौकब कादरी समेत एक से एक धुरंधर नेता विपक्ष में मौजूद हैं। विपक्ष के पास मुद्दों की भी कोई कमी नहीं है। लेकिन विपक्ष का एक भी नेता लालू जी के समकक्ष या आसपास भी नजर नहीं आ रहा। इसी का नतीजा है कि आज विपक्ष सरकार की नाकामियों को जनता तक पहुंचाने में नाकाम साबित हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि आज लालू जी जेल में नहीं होते तो सरकार की थू थू हो रही होती। राजद हो या फिर कांग्रेस, उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यही रही है कि वह आज भी स्थापना काल या फिर कहें कि बुजुर्ग हो रहे नेताओं के भरोसे है। बिहार में लालू जी की राष्ट्रीय जनता दल युवाओं को खुद से जोड़ने और उन्हें आगे बढ़ाने में नाकामयाब रही है। आज राजद में एक भी बड़ा नेता युवा वर्ग से नहीं आता है। शायद लालू जी राजद का भविष्य तेजस्वी और तेजप्रताप के हाथ में ही देना चाहते हैं और ऐसे में पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ने की संभावना है। वहीं कांग्रेस भी युवाओं को जोड़ने में नाकामयाब रही है। यही वजह है कि प्रदेश में हो रही तमाम प्रकार की समस्याओं के बावजूद विपक्ष लालू जी के बगैर हाँफता नजर आ रहा है, और एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम साबित हो रहा है।