
अनुभव

विगत 21 तारीख को एससी एसटी एक्ट के खिलाफ पटना में शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे सवर्ण एकता मंच के सदस्यों पर पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी। कई घायल हुए,कुछ को गम्भीर चोटें आईं। राज्य सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने दो दिनों तक कुछ भी बोलने में परहेज किया।सवर्ण समाज के भी किसी विधायक या सांसद ने इस पर कुछ बोलना उचित नहीं समझा। घटना के दो दिन बाद राज्य सरकार के श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने आंदोलनकारियों को असामाजिक तत्व और गलत लोग कह कर अपराधी साबित करने की कोशिश की। उसके अगले दिन भाजपा सांसद सी पी ठाकुर ने लाठीचार्ज की निंदा की। विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यमों से स्वर्ण समाज या यूं कहें कि भूमिहार समाज के लोग एकजुट होने की बात करने लगे। रविवार 7 अक्टूबर 2018 को गया के गांधी मैदान में भूमिहार समाज का धरना प्रस्तावित है।जन अधिकार पार्टी के प्रदेश महासचिव नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह के कुछ अन्य लोगों के साथ सांसद सीपी ठाकुर से मुलाकात के बाद भाजपा सांसद सी पी ठाकुर के इस धरने में शामिल होने की बात सामने आई।सांसद सी पी ठाकुर के प्रस्तावित धरने में शामिल होने की घोषणा के बाद लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सूरजभान सिंह ने भी धरने में शामिल होने की बात कही है। बिहार में इन तीनों के अलावा भी कई भूमिहार समाज के विधायक, सांसद, मंत्री और अन्य जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं दिखाई। खैर ,अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश में सवर्णों की स्थिति को देखते हुए ,सवर्णों की आबादी को देखते हुए क्या इस प्रकार का धरना या आंदोलन करके सवर्ण समाज फायदे में रहेगा ?
पूर्व का अनुभव बताता है कि जब जब भी इस प्रकार का आंदोलन हुआ है, भूमिहार समाज नुकसान में ही रहा है। बिहार में जातीयता काफी हावी है,खाशकर चुनाव के समय। ऐसा कई बार देखा गया है कि जब भी भूमिहार गोलबंद हुए हैं, अन्य सभी जातियां एक ओर गोल बंद हो जाती रही है। यदि आने वाले चुनावों में ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से भूमिहार समाज एवं सवर्णों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में शायद ही कोई भूमिहार या सवर्ण विधानसभा या फिर लोकसभा पहुंच पाएगा। बिहार में लोकसभा या फिर विधानसभा की शायद ही ऐसी कोई सीट है जहां अपने दम पर कोई भूमिहार चुनाव जीत सकता है । हां, किसी को चुनाव हराने में यह जरूर सक्षम है। निश्चित रूप से इस तरह के आंदोलन करने वालों को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दल तो इसी मौके की तलाश में हैं,वो तो चाहते हैं कि ऐसा हो और अन्य सभी जातियाँ गोलबंद हो जाए। क्या यह बेहतर नहीं कि कोई इस तरह की योजना पर कार्य किया जाए कि अन्य कुछ जातियां भी भूमिहार या सवर्ण समाज के इस आंदोलन में उनका साथ दें और इनके अधिक से अधिक जनप्रतिनिधि विधानसभा और लोकसभा में पहुंच सके। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।अन्यथा इस प्रकार के आंदोलन से इस समाज का नुकसान ही नुकसान है।
( यह लेखक की अभिव्यक्ति है बिहार ब्रेकिंग लेखक के विचारों से सहमत हो यह अनिवार्य नहीं है)