
बिहार डेस्क-पूर्णिया

ग्रामीण शिक्षा एवं लोककलामंच की शाम की पाठशाला की टीम पहुँची पूर्णियाँ के सुदूर गांव टिकपट्टी जहाँ गांधी जी के भी चरण पड़े थे। शाम की पाठ्शाला के तरफ से टिकापट्टी स्थित गांधी सदन में शिक्षा सम्बंधित जागरूकता अभियान चलाया गया। जिसमें गांधी जी के जीवन पर चर्चा की गई, और उनकी जीवनी की कहानी बताई गई। शिक्षा जागरूकता अभियान से पहले साफ़ सफाई अभियान चलाया गया, जिसमे स्थानीय लोगो ने पुरा योगदान किया। श्री कलिका हिंदी नाट्य समिति के अध्यक्ष जैनेन्द्र कुमार ने शाम की पाठशाला की तारीफ करते हुए कहा कि यह एक अच्छी पहल हैं इनके माध्यम से लोगो में जागरूकता आ रही हैं साफ़ सफाई और शिक्षा के प्रति। उन्होंने कहा कि कमिटी की अगली बैठक में आगामी गांधी जयंती समाहरोह की रूप रेखा तय की जायेगी और क्षेत्र के बुद्धिजीवियों को सम्मानित भी किया जायेगा। कला संस्कृति मंत्री माननीय कृष्ण कुमार ऋषि ने शताब्दी समारोह में गांधी सदन को गांधी सिर्किट से जोड़ने का भी आश्वाशन दिया। स्थानीय महिला ममता ने कहा कि शाम की पाठशाला से उन सभी को भी पढ़ाया जाये। उन जैसे कई लोग शिक्षित हो जाएंगे। साथ ही कार्यक्रम में मौजूद बुजुर्ग धमिनिया देवी ने कहा कि बचपन से उनलोगों ने कभी नहीं पढ़ा हैं पढ़ाई कर के शिक्षित हो कर अपने पोता पोती को पढ़ायेगें।
संस्थापक ई शशि रंजन कुमार ने कहा कि खुशी की बात यह हैं कि गांधी सदन कमिटी तथा स्थानीय लोग गांधी जी की पावन भूमि को संरक्षित करने के लिए बढ़ चढ़ कर सामने आ रहें हैं। साथ ही महिलाओ के आग्रह पर शाम की पाठशाला खोले जाने की मांग को भी मान लिया गया। कार्यक्रम में रूपेश कुमार, किसान चाचा अनिल कुमार मंडल, परमानंद, संगीतकार मनोरंजन झा, मंगली देवी, बबिता देवी, ममता देवी, फूलवती देवी, फुलमनी देवी, अनीता देवी, खुश्बू कुमारी, चेतना देवी, सबनम देवी, रजनी देवी, सुमन कुमार, पप्पू कुमार आदि उपस्थित थे। गांधी सदन का इतिहास बताते हुए श्री हिंदी कलिका नाट्य समिति के अध्य्क्ष जैनेन्द्र कुमार ने गांधी सदन के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि सन 1934 मे हुये भयानक भूकम्प को देखने गांधी जी मुंगेर से सीधे पूर्णिया धमदाहा, बिशनपुर, भवनीपुर, रुपौली के रास्ते होते हुए टीकापट्टी पहुचे थे। साथ ही स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य केंद स्वराज आश्रम के बने मंच से आम आदमी से संबोधन करते हुए कहे थे की इस प्रकीर्तिक आपदा की घड़ी में हम आपके साथ हैं। संबोधन के उसी स्थान पर प्रतीक के रूप में गांधी सदन का निर्माण बाद में किया गया, जो आज भी गांधी जी एवं स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है ।