
मंजेश कुमार

लगभग पिछले एक महीने से करीब हरेक सप्ताह या 15 दिनों पर एक बार भारत बंद किया जा रहा है। इस राजनीतिक भारत बंद से देश के करोड़ों मध्यम और निचले तबके के लोग जो प्रतिदिन मेहनत मजदूरी कर के अपना परिवार चलाते हैं क्या किसी ने उनके बारे में सोचा कि आखिर उस रात वे क्या खाते होंगे? कभी डीजल पेट्रोल के बढ़ते दाम को लेकर तो कभी एससी एसएसटी एक्ट के खिलाफ या समर्थन में भारत बंद। एक दिन के भारत बंद से देश मे लाखों परिवार भूखा सोता होगा। यही नहीं भारत बंद के नाम पर कई जगहों पर गुंडा गर्दी भी सामने आई है। अभी पिछले दिनों जब भारत बंद किया गया तो मुजफ्फरपुर में पप्पू यादव और बेगूसराय में श्याम रजक के पिटाई की भी बात सामने आई थी।
आखिर इसके जिम्मेदार कौन हैं और कैसे रुकेगा यह राजनीतिक ड्रामा? माना कि देश मे अभिव्यक्ति की आजादी है, हर व्यक्ति को अपनी बात रखने की छूट दी है भारत की संविधान ने लेकिन भारत बंद के नाम पर लाखों लोगों को भूखे सोने को मजबूर करने की छूट कब और किस संविधान ने दे दिया। इतना ही नहीं बंद के कारण कई मरीज समय पर अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं। बच्चों के स्कूल को बंद कर दिया जाता है। आखिर देश की कानून व्यवस्था में क्या झोल है। बिहार के मुख्यमंत्री ने जब शराबबंदी और दहेजप्रथा के खिलाफ 21 जनवरी को मानव श्रृंखला के लिए बिहार में कुछ घण्टों के लिए सड़कों पर वाहनों की आवाजाही रोकने की बात कही थी तो मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया था कि आखिर नीतीश कुमार अपने राजनीतिक फायदे के लिए बिहार में स्कूल कॉलेज और सड़कों पर वाहनों की आवाजाही को बंद करने वाले कौन होते हैं। हालांकि बात भी सही थी लेकिन बावजूद इस सबके मानव श्रृंखला बना। लेकिन अब कोई न्यायालय क्यों नहीं जा रहा जब हरेक सप्ताह भारत बंद किया जा रहा है। सड़कों पर वाहन के आवाजाही के बदले वहां टायर जला कर वातावरण को दूषित किया जाता है। आखिर हम सच मे बहुत बुद्धिमान हैं या महामूर्ख जो इस तरह के बंद को समर्थन करते हैं और देश मे लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं या होते हैं। आखिर इस तरह के बेबुनियाद बन्दी का विरोध क्यों नहीं?