
सेंट्रल डेस्कः देश में मीडिया को लेकर यह बड़ी बहस छिड़ी हुई है। मीडिया भी मजहब की तरह बंटी नजर आती है। दो खेमों में बंटी मीडिया का एक धड़ा कथित रूप से सत्ता की चाटूकारिता कर रहा है जबकि दूसरा धड़ा सत्ता से सवाल पूछने की वकालत कर रहा है। मौजूदा वक्त में ये दोनो धड़े आमने सामने है। मीडिया की भूमिका कितनी संदिग्ध हैं उसपर सवालों की कितनी लंबी फेहरिस्त है इसका अंदाजा इसी बात से लगा लेना चाहिए कि देश के बड़े पत्रकारों ने भी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाने शुरू कर दिया है। एबीपी न्यूज के पूर्व एंकर रहे अभिसार शर्मा में आज अपने वीडियो ब्लाॅग में कहा कि देश के कुछ न्यूज चैनल्स में मीडिया की रेगुलटरी बाॅडी ‘न्यूज ब्राडकास्टिंग एसोशिएशन को मजाक बना दिया है। एक घटना का जिक्र करते हुए अभिसार शर्मा ने कहा कि जब एक न्यूज चैनल ने एबीपी न्यूज के संवाददाता पर छेड़खानी का आरोप लगाया तो उसे माफी मांगनी पड़ी लेकिन उस चैनल ने वीडियो एडिटर की गलती बताकर उस मामले से पल्ला झाड़ लिया। जबकि वीडियो एडिटर के साथ प्रोडयूसर भी बैठता है इसलिए यह तर्क गलत है। दूसरे किसी मामले में जब उस चैनल से माफी मांगने को कहा गया तो उस चैनल ने माफी नहीं मांगी। यह एक प्रकार से एक दबंग नेता का भाव है, यह बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन का भाव है। अभिसार ने कहा कि गौहर रजा के एक कार्यक्रम को अफजल प्रेमी गैंग बताने वाले चैनल ने अब तक माफी नहीं मांगी। इन चैनलों ने न्यूज रेगुलेटरी बाॅडी को मजाक बना दिया है। ये आपको आंतकवादी घोषित कर देंगे आप कुछ नहीं कर पायेंगे। राजनेताओं से भी बदत्तर हैं कुछ मीडिया चैनल्स। 5 सालों में राजनेताओं की जवाबदेही तय होती है लेकिन इन चैनल्स की जवाबदेही कभी तय नहीं होती। देश ने कुछ पत्रकारों को कैमरे पर रिश्वत मांगते देखा है। सत्ता के चाटूकार बने रहने पर हमारी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी। हमपर कोई निवेश नहीं करेगा। ऐसी स्थिति में तो पत्रकारों के घर का चूल्हा जलना मुश्किल हो जाएगा। सत्ता से सवाल पूछकर हम 99 प्रतिशत मोदीभक्त मीडिया का भी भला कर रहे हैं क्योंकि विश्वसनीयता खत्म होने पर चूल्हे का संकट उनके घर में भी आएगा। जिस तरह से घटनाएं बढ़ रही है लोकतंत्र बर्बाद हो रहा है, इतिहास मीडिया को कभी माफ नहीं करेगा।
