
बिहार डेस्क-सुमित कुमार-बेगूसराय

तेघड़ा का श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला समाजिक समरसता, आस्था और धर्मनिरपेक्षता का अनोखा मिशाल है। यह मेला देश में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि मथुरा और वृंदावन के बाद तेघड़ा जन्माष्टमी मेला का ही स्थान आता है। मेला के सम्बन्ध में पुराने लोगों का कहना है कि सन 1928-29 में तेघड़ा एवं इसके आस पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्लेग जैसी महामारी का प्रकोप हुआ था। इस महामारी में सैकड़ों लोग काल कवलित हो गये। पूरे इलाके में कोहराम मचा था। संयोग से उसी समय चैतन्य महाप्रभु की एक कीर्तन मंडली बंगाल से चलकर तेघड़ा आयी। इस कीर्तन मंडली ने तेघड़ा में रूक कर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिससे लोग काफी प्रभावित हुये। बाद में तेघड़ा के लोगों ने कीर्तन मंडली से महामारी की व्यथा सुनायी।
कीर्तन मंडली ने यहाँ के लोगों को उत्प्रेरित करते हुये कहा कि चैतन्य महाप्रभु की पूजा अर्चना करो इससे तुम्हारे सारे दुःखों का शमन हो जायेगा। उन्हीं की प्रेरणा से प्रेरित होकर वंशी पोद्दार, लालो पोद्दार सरीखे लोगों ने सर्व प्रथम स्टेशन रोड शिव मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की शुरूआत की। उस दिन से सचमुच में तेघड़ा से प्लेग जैसी महामारी के प्रकोप का अन्त हो गया और लोगों ने राहत की साँस ली। आस्था के प्रतीक इस विन्दु का विस्तार हुआ और सन 1930 में हरिहर लाल, वैद्यनाथ सुलतानियाँ जैसे लोगों की अगुआई में दूसरा मंडप जिसे आज मुख्य मंडप कहा जाता है वहाँ श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का आयोजन होने लगा। कहा जाता है कि जिस समय जिस समय श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की शुरूआत की गयी उस जमाने में न ध्वनि विस्तारक यंत्र था न साज सज्जा की चमक दमक थी। साड़ी से घेर केले के थाम गाड़कर लोग मंडप बना लेते थे। तेघड़ा बाजार चौक पर एक ऊँचा मचान बना दिया जाता था जिस पर ग्रामीण बाजा “पिपही” और “खुदरक” बजता रहता था जिसे लोग बड़े चाव से सुनते रहते थे।
कालांतर में धीरे धीरे इसका विस्तार होने लगा और आज तो करीब पाँच किलोमीटर की परिधि में कुल चौदह जगहों में मंडप स्थापित कर भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पूजा अर्चना होने लगी है। कई राज्यों से प्रसिद्ध कलाकारों के द्वारा मंडप की रंग बिरंगी डिजाइन तैयार की जाती है। सम्पूर्ण मेला क्षेत्र पाँच दिनों तक रात दिन रोशनी में नहाता है। अब यह मेला ग्रामीण परिवेश से बाहर निकलकर आधुनिकता की दौर में प्रवेश कर गया है। शहरों की तरह पंडालों का निर्माण के साथ साथ मेला में मनोरंजन के साधन के रूप में आकाश झूला, ब्रेक डांस, मौत का कुआँ, चिड़ियाघर आदि मुख्य आकर्षण के केन्द्र होते हैं। कई जिलों और दुसरे प्रान्त के लाखों लोग इस मेला को देखने आते हैं। पाँच दिवसीय मेला की खासियत यह है कि यह अहर्निश मेला है। आस्था का जो भी सवाल हो यह मेला स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली भी थी।गंगा पार कर जो स्वतंत्रता सेनानी उत्तर बिहार आते थे उन्हें तेघड़ा, बजलपुरा, अयोध्या आदि जगहों में आराम करने की जगह मिलती थी। अंग्रेज सिपाहियों को चकमा देने के लिये यह मेला काफी महत्वपूर्ण था। स्थानीय बुद्धिजीवियों का कहना है कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सिर्फ मेला ही नहीं तेघड़ा की सांस्कृतिक धरोहर है।