
मंजेश कुमार की कलम से
बिहार भारत के पूर्वी भाग में अवस्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज्य है जिसकी राजधानी पटना में है। बिहार नाम का जन्म बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। बिहार के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल में विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत के राज्य के सामान्य योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार वर्तमान में 13 वाँ राज्य है। सन् 1936 ई में ओडिशा और सन् 2000 ई॰ में झारखण्ड के अलग हो जाने से बिहार ने कृषि के दम पर और अपने मेधा को लेकर उन्नति की है।

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इतना ही नहीं बिहार राजनीति की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण राज्य है। विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ने वाला प्रदेश बिहार देश की राजनीति में अपना एक अलग ही स्थान रखता है। आजादी के पूर्व जब महात्मा गाँधी ने चंपारण से अपनी आंदोलन की शुरुआत की थी तब उन्हें स्थानीय नेता राजकुमार शुक्ला समेत राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह और ब्रज किशोर प्रसाद जैसे विभूतियों का भी अतुलनीय सहयोग प्राप्त था। इतना ही नहीं बिहार यदुनंदन प्रसाद मेहता, बाबु जगदेव प्रसाद, रामस्वरूप शर्मा जैसे महान समाज सुधारक एवं जगदीश महतो जैसे कम्युनिस्ट नेताओं की भी भूमि है।
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यहाँ से शुरू होती है बिहार की राजनीति-
1946 में बिहार की पहली सरकार का नेतृत्व श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह ने किया था। क्रमशः ये दोनों ही बिहार के पहले मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री भी रहे। इन्होने बिहार में एकनिष्ठ अखंडता और महान सार्वजनिक भावना के साथ एक अनुकरणीय सरकार चलाई। फिर रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या के बाद साठ के दशक के बाद दो दशकों तक बिहार पर कांग्रेस ने राज किया और इसी दौरान सत्येंद्र नारायण सिंह जनता पार्टी के साथ हो गये थे। फिर 70 के दशक में बिहार की पिछड़ी जातियां राजनीतिक सत्ता के लिए मुखर हुई और दारोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने। दरोगा प्रसाद राय के मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछड़े लोगों में आशा की एक किरण दिखाई दी लेकिन कांग्रेस में उच्च जाति गुट के नेताओं ने पिछड़ों के मन में असंतोष भर कर उन्हें हटाने की साजिश रचनी शुरू कर दी। लेकिन इसी दरम्यान ‘कोयरी’ जाति से ताल्लुक रखने वाले नेता जगदेव प्रसाद सामने चमकने लगे और बिहार की राजनीति पर उन्होंने अपना अमिट छाप छोड़ा। उनके प्रभाव के कारण ही बिहार में ‘शोषित समाज दल’ राजनीतिक परिदृश्य में सामने आई और कांग्रेस के समर्थन से कुछ समय के लिए सत्ता में आई। सतीश प्रसाद सिंह जो कि जगदेव प्रसाद के रिश्तेदार थे केवल एक सप्ताह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। पिछड़े समाज से ताल्लुक रखने वाले पहले सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले ‘पिछड़ी जाति’ के मुख्यमंत्री बने थे। जिनकी हत्या एक आंदोलन के दौरान हो गई जिसका आरोप कि कांग्रेस के एक भूमिहार नेता पर लगा।
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इंदिरा सरकार का आपातकाल और जेपी आंदोलन
यह दौर था सत्तर के दशक का और इसी दशक में इंदिरा की सरकार भारी उतार चढ़ाव से गुजर रही थी। सन 1974 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार में एक छात्र आंदोलन शुरू हुई और धीरे धीरे यह एक जन लोकप्रिय आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया था। एक तरफ बिहार में चल रहे जेपी आंदोलन देश को संदेश दे रहा था कि चुनाव ‘लोकतंत्र और तानाशाही’ में से एक को चुनने का अंतिम मौका है तो वहीं दूसरी तरफ इंदिरा सरकार अभी भी स्थिर नहीं थी। 12 जून 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गाँधी की सांसद के रूप में चुनाव को अवैध करार दे दिया साथ ही उन्होंने उन्हें अगले छः वर्षों तक उनके चुनाव लड़ने पर पाबन्दी भी लगा दी। इस स्थिति में इंदिरा गाँधी के पास राज्यसभा से भी संसद पहुँचने का रास्ता नहीं बचा था और अब उनके पास से प्रधानमंत्री की कुर्सी भी जाने ही वाली थी। जानकार के मुताबिक यही कारण था कि 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल लगाया गया था।
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बिहार में जेपी के नेतृत्व में चल रहा यह आंदोलन इतना लोकप्रिय हो गया कि इससे एक निकल कर जनता दल नामक एक राजनीतिक दल का गठन किया गया और बिहार में यह पार्टी सत्ता में भी आ गई। जेपी आंदोलन से निकल कर नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, लालू प्रसाद यादव सरीखे नेता सामने आये और इन्होने एक नया बिहार बनाने का संकल्प लेकर राजनीति में प्रवेश किया।
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1977 में बिहार में जनता दल सत्ता में आई और कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने। इस बीच आजादी से पहले ही 1939 बिहार में गठित कम्युनिस्ट पार्टी ने बिहार के लोगों पर अपना अमिट छाप छोड़ा था और 1960, 1970, और 1980 के दशक में बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन एक जबर्दस्त ताकत था और यह सबसे प्रबुद्ध तबके का प्रतिनिधित्व करता था।
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आधुनिक और वर्तमान राजनीति
फिर बिहार की राजनीति में 1980 के दशक में एक नया मोड़ आया जब पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई और इसके बाद जनता दल जो कि कांग्रेस के प्रभुत्व के खिलाफ एक बड़ी शक्ति थी को दो टुकड़ों में बांट दिया गया। और इसके बाद बिहार में दो नये पार्टियों का गठन हुआ जिसमे एक का नाम है राष्ट्रीय जनता दल और दुसरे का नाम है जनता दल यूनाइटेड। इससे पहले 1990 में जनता दल की तरफ से लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने फिर 1995 में लालू प्रसाद यादव दुबारा मुख्यमंत्री बेन लेकिन राजनीतिक उठापठक के बाद लालू यादव को कुर्सी छोडनी पड़ी और फिर उनकी पत्नी राबड़ी देव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी को संभाला। फिर वर्ष 2000 में राष्ट्रीय जनता दल की सरकार बनी और राबड़ी देवी एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनीं। करीब पंद्रह वर्षों तक लालू-राबड़ी के शासन के बाद वर्ष 2005 में बिहार में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिली और राष्ट्रपति शासन लागु किया गया और दुबारा चुनाव में नीतीश कुमार जनता दल यूनाइटेड के नेता चुने गये और भाजपा के सहयोग से पहली बार मुख्यमंत्री बने।
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2010 में फिर से उसी गठबंधन को बहुमत मिला और नीतीश कुमार दुबारा मुख्यमंत्री बने लेकिन इस बार अपने गठबंधन के आन्तरिक कलह के कारण नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दलित नेता जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद का शपथ दिलाई गई। लेकिन यह सरकार भी ज्यादा दिनों तक नही चली और जीतनराम मांझी को अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। फिर 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा से अलग होकर राजद के साथ चुनाव लड़े और एक बार फिर से तीसरी बार मुख्यमंत्री बने लेकिन इस बार राजद के साथ भी उनकी नहीं बनी और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया और फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। और फिर वर्ष 2020 में चुनाव की गतिविधि जारी है जिसमें एक तरफ भाजपा और जदयू एक खेमे में है तो दूसरी तरफ राजद, कांग्रेस समेत कई और अन्य दल मिलकर महागठबंधन के रूप में सामने है तो वहीँ एक और तीसरा फ्रंट है जिसकी अगुवाई जाप सुप्रीमो पप्पू यादव कर रहे हैं जिसमे कई छोटे बड़े राजनीतिक दल सम्मिलित हैं।
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