
अतिथि संपादक डॉ जी पी सिंह ‘आनंद’ की कलम से

74वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर सर्वप्रथम वतन के जांबाज योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करना प्रत्येक देशवासी का परम कर्त्तव्य है जिनकी बदौलत हम स्वाधीन हो सके तथा इस शुभ दिन पर एक-दूसरे को बधाई देने का सुअवसर मिल सका। इस अवसर पर हम देशवासियों को स्मरण करना चाहिए कि अनगिनत वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति देकर यह स्वाधीनता हमें उपहार में दिया है। इस अतुलनीय और अविस्मरणीय उपहार को कंठहार बनाकर सजाए रखना ही उनकी शहादत के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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हमें पता है कि कितनी माताओं की गोद सूनी हुईं, कितनी ललनाओं की माँग के सिंदूर धुले, कितनी बहनों ने भाई को खोया और तब हमें स्वाधीनता मिल सकी। ऐसी माताओं, ललनाओं और बहनों के प्रति आभार व्यक्त करना हमारा फर्ज़ बनता है। भारतवर्ष एक भौगोलिक मानचित्र मात्र नहीं है, अपितु यह यहाँ के निवासियों का मनचित्र भी है। अनेकानेक धर्म, मज़हब, संप्रदाय, समुदाय और पंथ में विश्वास रखनेवाले लोगों का एक साथ सद्भाव और सौहार्द के साथ रहने तथा रंग-बिरंगी परंपराओं, परिधान एवं पर्व-त्यौहार में आस्था और विश्वास रखनेवाले महामनाओं पर इस देश को गुमान है।
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इस देश की सभ्यता एवं संस्कृति की शास्त्रीयता के संग जीनेवाले लोगों का शास्त्रीय जीवन, उनकी शास्त्रीय आत्मा, उनके शास्त्रीय मन, शास्त्रीय विचार, शास्त्रीय साहित्य और शास्त्रीय संगीत ही हमें दुनिया के अन्य देशों में अन्यतम होने के साथ-साथ अति विशिष्ट होने की पहचान देता है। हमारे पुरखों और पुरखिन ने बस यूँ ही भारत की शस्य श्यामला वसुंधरा को माता का मान नहीं दिया है। हमें अपनी मातृभूमि और इसकी प्रातःस्मरणीय सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है। अतः हमें अपने पंच तत्त्वों से निर्मित तन, सुंदर विचारोंवाले मन और विद्यारूपी धन से इसकी वंदना करनी चाहिए।